बसंत पंचमी का पर्व माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। यह तिथि अबूझ संज्ञक शुभ मुहूर्त की श्रेणी में आती है। इस श्री पंचमी का पर्व कुछ खास ज्योतिषीय योग में मनाया जाएगा. बसंत पंचमी को श्री पंचमी व श्री राधा श्याम सुंदर पंचमी आदि नामों से भी जाना जाता है । भारत में कई त्यौहार मनाये जाते हैं, जो न केवल एक उत्सव होते हैं, बल्कि पर्यावरण में आने वाले बदलाव के सूचक भी होते हैं . हिंदी पंचाग की तिथीयाँ अपने साथ मौसमी बदलाव का संकेत भी देती हैं जो कि पुर्णतः प्राकृतिक होते हैं. उन्ही त्यौहारों में एक त्यौहार है वसंत पंचमी।
बसंत पंचमी विद्या की अधिष्ठात्री सरस्वती देवी का प्राकट्य योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के कंठ से हुआ इसीलिए मां सरस्वती कहलाईं। बसंत पंचमी को श्री पंचमी व श्री राधा श्याम सुंदर पंचमी आदि नामों से भी जाना जाता है । वसंत पंचमी का पर्व माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। यह तिथि अबूझ संज्ञक शुभ मुहूर्त की श्रेणी में आती है। वसंत पंचमी उत्सव भारत के पूर्वी क्षेत्र में बड़े उत्साह से मनाया जाता हैं, इसे सरस्वती देवी जयंती के रूप में पूजा जाता हैं, जिसका महत्व पश्चिम बंगाल में अधिक देखने मिलता हैं. बड़े पैमाने पर पुरे देश में सरस्वती पूजा अर्चना एवम दान का आयोजन किया जाता हैं . इस दिन को संगीत एवम विद्या को समर्पित किया गया हैं . माँ सरस्वती सुर एवम विद्या की जननी कही जाती हैं इसलिये इस दिन वाद्य यंत्रो एवम पुस्तकों का भी पूजन किया जाता हैं।
वसंत पंचमी 2024 में कब हैं।
यह दिवस हिंदी पंचांग के अनुसार माघ महीने की पंचमी तिथी को मनाया जाता हैं, इस दिन से वसंत ऋतू का प्रारम्भ होता हैं . प्राकृतिक रूप में भी बदलाव महसूस होता है. इस दिन पतझड़ का मौसम खत्म होकर हरियाली का प्रारम्भ होता हैं . अंग्रेजी पंचांग के अनुसार यह दिवस जनवरी – फरवरी माह में मनाया जाता हैं।
बसंत पंचमी की तारीख : 14 फरवरी
दिन : बुधवार
बसंत पंचमी पूजा मुहूर्त : सुबह 07:12 से दोपहर 12:34 तक
कुल समय : 5 घंटे 21 मिनट
क्यों होती है मां सरस्वती की पूजा
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, ज्ञान देवी मां सरस्वती शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ही ब्रह्माजी के मुख से प्रकट हुई थीं. इसलिए बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है. सरस्वती मां को ज्ञान की देवी कहा जाता है. इसलिए इस दिन पूरे विधि विधान से मां सरस्वती की पूजा करने से वो प्रसन्न होती हैं और भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।
बसंत पंचमी तिथि 2024 :
पंचमी तिथि प्रारम्भ- 13 फरवरी 2024 को दोपहर 02:41 से प्रारंभ।
पंचमी तिथि समाप्त- 14 फरवरी 2024 को दोपहर 12:09 तक।
वसन्त पंचमी मुहूर्त-
वसन्त पंचमी सरस्वती पूजा मुहूर्त- 14 फरवरी 2024 बुधवार के दिन सुबह 07:01 से दोपहर 12:35 के बीच।
अमृत काल मुहूर्त : सुबह 08:30 से सुबह 09:59 तक।
गोधूलि मुहूर्त : शाम 06:08 से 06:33 तक।
रवि योग : सुबह 10:43 से अगले दिन सुबह 07:00 तक।
वसंत ऋतू पंचमी महत्व
वसंत पंचमी माघ के महीने में आती हैं, इस दिन वसंत ऋतू का प्रारंभ होता हैं वंसत को ऋतू राज माना जाता हैं यह पूरा माह बहुत शांत एवम संतुलित होता हैं इन दिनों मुख्य पाँच तत्व (जल, वायु, आकाश, अग्नि एवम धरती ) संतुलित अवस्था में होते हैं और इनका ऐसा व्यवहार पृकृति को सुंदर एवम मन मोहक बनाता हैं अर्थात इन दिनों ना बारिश होती हैं, ना बहुत ठंडक और ना ही गर्मी का मौसम होता हैं, इसलिए इसे सुहानी ऋतू माना जाता हैं। वसंत में सभी जगह हरियाली का दृश्य दिखाई पड़ता हैं . पतझड़ खत्म होते ही पेड़ों पर नयी शाखायें जन्म लेती हैं, जो प्राकृतिक सुन्दरता को और अधिक मनमोहक कर देती हैं। ये पर्व बसंत मौसम की शुरुआत का सूचक है, पूरे दिन अबूझ मुहूर्त रहेगा. इसका अर्थ है कि बसंत पंचमी का दिन बेहद शुभ होता है और इस दिन किसी भी नए कार्य की शुरुआत की जा सकती है. ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक इस दिन लोग बगैर पंचांग देखे दिन भर में कभी भी अपने कार्य को पूरा कर सकते हैं. वहीं, कई लोग इस दिन परिवार में छोटे बच्चों को पहली बार किताब और कलम पकड़ाने का भी विधान है।
ऐसे हुआ मां सरस्वती का प्राकट्य
विद्या, बुद्धि, ज्ञान एवं वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती का प्राकट्य ब्रह्माजी के कंठ से हुआ इसीलिए ये सरस्वती के नाम से प्रसिद्ध हुई। ये ब्रह्म स्वरूपा, कामधेनु व समस्त देवों की प्रतिनिधि है। वसंत पंचमी खास मायने में वैदिकों का दिन माना जाता है। आज के दिन वैदिक विद्वानों का सत्कार व सम्मान भी किया जाता है।
विद्या आरंभ का दिन
विद्या आरंभ करने का श्री पंचमी प्रमुख दिन है। आज के दिन मां सरस्वती का पंच, दस व सोलह उपचारों से पूजन किया जाता है। मां को सफेद व पीले वस्त्र व पुष्प भी चढ़ाए जाते है। पुस्तक व लेखनी में भी सरस्वती का निवास माना जाता है अतः इनकी पूजा भी की जाती है।
किस तरह करें मां सरस्वती की पूजा
श्रद्धालु स्नान करने के बाद पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं. अपने ठीक सामने पीला वस्त्र बिछाकर मां सरस्वति की मूर्ति को उस पर स्थापित करें. जिसके बाद रोली मौली, केसर, हल्दी, चावल, पीले फूल, पीली मिठाई, मिश्री, दही, हलवा आदि का प्रसाद मां के सामने अर्पित कर ध्यान में बैठ जाएं. मां सरस्वती के पैरों में श्वेत चंदन लगाएं. पीले और सफेद फूल दाएं हाथ से उनके चरणों में अर्पित करें और ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः का जाप करें. शिक्षा की बाधा का योग है तो इस दिन विशेष पूजन करके उससे छुटकारा पाया जा सकता है।
सरस्वती पूजा विधि
मां सरस्वती की पूजा से पहले इस दिन नहा-धोकर सबसे पहले पीले वस्त्र धारण कर लें. देवी की मूर्ति अथव चित्र स्थापित करें और फिर सबसे पहले कलश की पूजा करें. इसके उपरांत नवग्रहों की पूजा करें और फिर मां सरस्वती की उपासना करें. इसके बाद पूजा के दौरान उन्हें विधिवत आचमन और स्नान कराएं. फिर देवी को श्रंगार की वस्तुएं चढ़ाएं. बसंत पंचमी के दिन देवी मां को सफेद वस्त्र अर्पित करें. साथ ही, खीर अथवा दूध से बने प्रसाद का भोग मां सरस्वती को लगाएं।
*.बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा पूरी आस्था और विश्वास के साथ की जाती है. इस दिन विभिन्न शिक्षण संस्थानों में मां सरस्वती की पूजा के साथ-साथ घरों में भी उनकी पूजा करने की परंपरा है।
*.सरस्वती पूजा के दिन प्रात:काल स्नान के बाद पीले वस्त्र पहन कर सबसे पहले मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित करें।
*.अब तिलक कर धूप-दीप जलाकर मां को पीले फूल अर्पित करें।
*.बसंत पंचमी के दिन पूजा में सरस्वती स्त्रोत का पाठ करने से व्यक्ति को अद्भूत परिणाम प्राप्त होते हैं।
* बसंत पंचमी केे दिन धन की देवी मां लक्ष्मी, भगवान विष्णु, वाद्य यंत्र और किताबें रखकर उन्हें भी धूप-दीप दिखा कर विधि विधान से पूजा करनी चाहिए।
*.इस दिन पूजास्थल पर मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रतिमाएं स्थापित कर श्री सूक्त का पाठ करना बहुत शुभ और लाभकारी माना गया है।
सरस्वती पूजा मंत्र
वसंत पंचमी के दिन आप सरस्वती वंदना से पूजा कर सकते हैं. इसके अलावा माता सरस्वती के मूल मंत्र या संपूर्ण मंत्र से भी पूजा कर सकते हैं।
देवी सरस्वती के मंत्र
श्लोक – ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम्..
कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्.
वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्..
रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम्.
सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभि:..वन्दे भक्तया वन्दिता च
देवी सरस्वती का बीज मंत्र
सरस्वती का बीज मंत्र ‘क्लीं’ है. जिसे शास्त्रों में क्लीं कारी कामरूपिण्यै यानी ‘क्लीं’ काम रूप में पूजनीय है. इसलिए वाणी मनुष्य की समस्त कामनाओं की पूर्ति करने वाली हो जाती है।
सरस्वती गायत्री मंत्र
‘ॐ वागदैव्यै च विद्महे कामराजाय धीमहि. तन्नो देवी प्रचोदयात्.’
विघ्न-बाधाओं का नाश करने वाला मंत्र
ऐं ह्रीं श्रीं अंतरिक्ष सरस्वती परम रक्षिणी।
मम सर्व विघ्न बाधा निवारय निवारय स्वाहा।।
मूल मंत्र
विघ्न-बाधाओं का नाश करने वाला मंत्र
ऐं ह्रीं श्रीं अंतरिक्ष सरस्वती परम रक्षिणी।
मम सर्व विघ्न बाधा निवारय निवारय स्वाहा।।
मां सरस्वती के इन मंत्रों का जाप करें
ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम्।।
कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्।
वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्।।
रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम्।
सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभि:।।वन्दे भक्तया वन्दिता च
सरस्वती वंदना
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना। या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्। हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम् वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥२॥
वसंत पंचमी कैसे मनाया जाती हैं?
वसंत पंचमी को एक मौसमी त्यौहार के रूप में भिन्न- भिन्न प्रांतीय मान्यता के अनुसार मनाया जाता हैं। कई पौराणिक कथाओं के महत्व को ध्यान में रखते हुए भी इस त्यौहार को मनाया जाता हैं। इस दिन सरस्वती माँ की प्रतिमा की पूजा की जाती हैं उन्हें कमल पुष्प अर्पित किये जाते हैं। इस दिन वाद्य यंत्रो एवम पुस्तकों की भी पूजा की जाती हैं। इस दिन पीले वस्त्र पहने जाते हैं। खेत खलियानों में भी हरियाली का मौसम होता हैं यह उत्सव किसानों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण हैं इस समय खेतों में पीली सरसों लहराती हैं किसान भाई भी फसल के आने की ख़ुशी में यह त्यौहार मनाते हैं।
दान : दान का भी बहुत महत्व होता हैं वसंत पंचमी के समय अन्न दान, वस्त्र दान का महत्व होता हैं आजकल सरस्वती जयंती को ध्यान में रखते हुए गरीब बच्चो की शिक्षा के लिए दान दिया जाता हैं . इस दान का स्वरूप धन अथवा अध्ययन में काम आने वाली वस्तुओं जैसे किताबे, कॉपी, पेन आदि होता हैं।
गरबा नृत्य : वसंत पंचमी पर गुजरात प्रान्त में गरबा करके माँ सरस्वती का पूजन किया जाता हैं यह खासकर किसान भाई मनाते हैं यह समय खेत खलियान के लिए बहुत उपयुक्त माना जाता हैं। पश्चिम बंगाल में भी इस उत्सव की धूम रहती हैं यहाँ संगीत कला को बहुत अधिक पूजा जाता हैं इसलिए वसंत पंचमी पर कई बड़े- बड़े आयोजन किये जाते हैं जिसमे भजन, नृत्य आदि होते हैं . काम देव और देवी रति की पौराणिक कथा का भी महत्व वसंत पंचमी से जुड़ा हुआ हैं इसलिए इस दिन कई रास लीला उत्सव भी किये जाते हैं।
वसंत में पतंग बाजी : यह प्रथा पंजाब प्रान्त की हैं जिसे महाराणा रंजित सिंह ने शुरू किया था . इस दिन बच्चे दिन भर रंग बिरंगी पतंगे उड़ाते हैं और कई स्थानों पर प्रतियोगिता के रूप में भी पतंग बाजी की जाती हैं।
वसंत सूफी त्यौहार : यह पहला ऐसा त्यौहार हैं जिसे मुस्लिम इतिहास में भी मनाया जाता रहा हैं . अमीर खुसरों जो कि सूफी संत थे उनकी रचानाओं में वसंत की झलक मिलती हैं . एतिहासिक प्रमाण के अनुसार वसंत को जाम औलिया की बसंत , ख्वाजा बख्तियार काकी की बसंत के नाम से जाना जाता हैं . मुग़ल साम्राज्य में इसे सूफी धार्मिक स्थलों पर मनाया जाता था।
वसंत शाही स्नान : वसंत ऋतू में पवित्र स्थानों, तीर्थ स्थानों के दर्शन का महत्व होता हैं साथ ही पवित्र नदियों पर स्नान का महत्व होता हैं . प्रयाग त्रिवेणी संगम पर भी भक्तजन स्नान के लिए जाते हैं।
वसंत मेला : वसंत के उत्सवों में कई स्थानों पर मेला लगता हैं पवित्र नदियों के तट, तीर्थ स्थानों एवम पवित्र स्थानों पर यह मेला लगता हैं जहाँ देशभर के भक्तजन एकत्र होते।
बसंत पंचमी के दिन भगवान कामदेव की पूजा
ऐसी मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन, देवी सती और भगवान कामदेव की षोडशोपचार पूजा करने से हर व्यक्ति को शुभ समाचार एवं फल की प्राप्ति होती है. इसलिए बसंत पंचमी के दिन, षोडशोपचार पूजा करना विशेष रूप से वैवाहिक जीवन के लिए सुखदायक माना गया है.
विद्या की प्राप्ति के लिए ये काम जरूर करें
बसंत पंचमी के दिन अबूझ मुहूर्त होता है. इसीलिए ऐसी मान्यता है कि इस दिन कोई भी शुभ कार्य बिना किसी मुहूर्त के किया जा सकता है. शास्त्रों में बताए गए नियम के अनुसार इस दिन कुछ खास कार्य करने से माता सरस्वती अत्यंत प्रसन्न होती हैं. ऐसी मान्यता है कि हमारी हथेलियों में मां सरस्वती का वास होता है. इसलिए बसंत पंचमी के दिन जगने के बाद सबसे पहले अपनी हथेलियां देखने से मां सरस्वती के दर्शन करने के बराबर फल की प्राप्ति होती है. माता सरस्वती की विशेष कृपा प्राप्त करने या यूं कहें कि विद्या और बुद्धि की प्राप्ति के लिए इस दिन ये काम जरूर करें।
सरस्वती पूजा के दिन दान कर इस तरह करें ज्ञान का विस्तार
विद्या और ज्ञान बढ़ाने के लिए इस दिन गरीब बच्चों को स्टेशनरी के सामानों में पेन, पेंसिल, कलर बॉक्स, स्टूमेंट्स, रबर, कलर बॉक्स, स्केल, ज्यॉमेट्री बॉक्स, कलर पेंसिल, कलर पेन, कॉपी, किताब, क्रॉफ्ट पेपर, क्रॉफ्ट शीट, क्रॉफ्ट बॉक्स, स्कूल बैग जैसी कई चीजों में से कुछ भी अपनी पसंद का चुन सकते हैं।
देश में इन पांच स्थानों पर मां सरस्वती का मंदिर
* श्री शरदम्बा मंदिर, श्रृंगेरी, कर्नाटक
* दक्षिणा मूकाम्बिका मंदिर, एर्नाकुलम, केरल
* वारंगल सरस्वती मंदिर, मेदक, तेलंगाना
* ज्ञान सरस्वती मंदिर, बसर, तेलंगाना
* श्री सरस्वतीक्षेत्रम, अनंतसागर, तेलंगाना
बसंत पंचमी के बारे में कुछ कम ज्ञात तथ्य
* भारत के कुछ हिस्सों में ‘बसंत पंचमी’ के शुभ दिन को ‘सरस्वती पूजा’ के रूप में भी मनाया जाता है।
* लोकप्रिय संस्कृति में, बसंत पंचमी ज्ञान, कला और संगीत की देवी सरस्वती को समर्पित है और उत्तर भारत में उनकी विशेष प्रार्थनाओं द्वारा चिह्नित है।
*.भारत के कुछ हिस्सों में लोग इस दिन प्रेम के देवता कामदेव की भी पूजा करते हैं। दिलचस्प बात यह है कि यह दिन वसंत ऋतु के आगमन की भी शुरुआत करता है। बसंत पंचमी होलिका और होली की तैयारी की शुरुआत का भी प्रतीक है, जो 40 दिन बाद होती है।
* बसंत पंचमी कई त्योहारों में से एक है (अन्य में कमोत्सव / मदनोत्सव और होली शामिल हैं) जो भारत में ‘वसंतोत्सव’ (“वसंत का त्योहार”) के हिस्से के रूप में लंबे समय से मनाए जाते हैं।
* ‘वसंतोत्सव’ समारोहों के शुरुआती पाठ संदर्भों में से एक ‘तैत्तिरीय आरण्यक’ (कुछ इतिहासकारों द्वारा पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व की तारीख) में है जिसमें एक मार्ग (1.3.5) का उल्लेख है कि वसंत ‘जरदक्ष’ है, जिसका अर्थ है “पानी में कुशल” ” भट्ट भास्कर और सयाना ने इस मार्ग पर टिप्पणी की है कि वसंत के दौरान, लोग पानी के शौकीन होते हैं और देवताओं के कपड़े हल्दी पाउडर जैसे एजेंटों द्वारा रंगे जाते हैं। ये संदर्भ वसंत ऋतु के होली और पीले रंग (बसंत पंचमी का रंग) दोनों के साथ जुड़ाव को दर्शाते हैं।
* संस्कृत साहित्य में, वसंत की शुरुआत प्रकृति के जीवित होने से जुड़ी है: फूल खिलते हैं, भौंरा भिनभिनाते हैं, और जानवर संभोग करते हैं।
* “कविता और गद्य दोनों में, लेखकों ने वसंत ऋतु के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ आरक्षित रखा है। ‘ऋतुसंहारा’। (“ऋतुओं का संग्रह”) में, कवि कालिदास वसंत की शुरुआत के एक सुंदर विवरण के साथ छठे और अंतिम सर्ग की शुरुआत करते हैं,
* बाणभट्ट की गद्य-कविता ‘कादंबरी’ (“द लिकर”) के एक अंश में, नायिका ने खूबसूरती से वर्णन किया है कि कैसे वसंत का धीमा आगमन उसकी युवावस्था के आगमन के समानांतर है।
* ‘बसंत पंचमी’ के त्योहार को संस्कृत ग्रंथों में ‘श्री पंचमी’ के रूप में जाना जाता है और ऐतिहासिक रूप से, यह लक्ष्मी (जिसे ‘श्री’ भी कहा जाता है) न कि सरस्वती की पूजा की जाती थी।
* ‘वसंत पंचमी’ प्रयाग में माघ मेला, अर्ध कुंभ मेला और कुंभ मेले में छह प्रमुख ‘स्नान’ (स्नान) दिनों में से चौथा है।
* प्रचलित मान्यताओं के अनुसार ज्ञान, कला, संगीत और विज्ञान की देवी सरस्वती का जन्म इसी दिन हुआ था और लोग ज्ञान प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा करते हैं। इस दिन देवी की पूजा की जाती है ताकि वह अपने भक्तों को इसी तरह का उपहार दे सकें।
* मुसलमान भी 12वीं शताब्दी ईस्वी से बसंत मनाते आ रहे हैं। किंवदंतियों का कहना है कि दिल्ली के चिश्ती संत निजामुद्दीन औलिया के युवा भतीजे तकीउद्दीन नूह की मृत्यु के बाद, वह दुःख से इतना आहत हुआ कि वह समाज से हट गया। दरबारी कवि अमीर खुसरो ने संत की मनोदशा को उज्ज्वल करने के तरीकों के बारे में सोचने की कोशिश की। स्थानीय महिलाओं को बसंत पर फूल लेकर और पीले रंग के कपड़े पहने देखकर, खुसरो भी पीले रंग के कपड़े पहने और संत के पास फूल ले गए। इससे संत के चेहरे पर मुस्कान आ गई। तब से, दिल्ली में निजामुद्दीन औलिया की दरगाह और चिश्ती संप्रदाय की सभी दरगाहों पर बसंत मनाया जाने लगा।
”इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।”
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