जनवरी की कड़कड़ाती सर्दी में उत्तर भारत में हर किसी को लोहड़ी का इंतजार रहता है, चलो नाच-गाने और खुशियों के लिए तैयार हो जाएं क्योंकि लोहड़ी आ गई है। लोहड़ी पंजाबी और हरियाणवी लोग बहुत उल्लास से मनाते हैं. यह देश के उत्तर प्रान्त में ज्यादा मनाया जाता हैं. इन दिनों पुरे देश में पतंगों का ताता लगा रहता हैं. पुरे देश में भिन्न-भिन्न मान्यताओं के साथ इन दिनों त्यौहार का आनंद लिया जाता हैं।
भारत में जनवरी अपने साथ कड़कती ठण्ड लाता है और उसके साथ ही बहुत से खूबसूरत त्यौहार भी। चाहे वह दक्षिण भारत में पोंगल हो, उत्तर भारत में मकर संक्रांति और पंजाब में लोहड़ी हो। लोहड़ी को भले ही केवल पंजाब से जोड़ कर देखा जाता हो लेकिन आज के समय में यह त्यौहार सिर्फ केवल पंजाब तक सीमित नहीं रह गया है, यह पंजाब, हरियाणा, दिल्ली सहित देश और विदेश में इसे बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता है। लोहड़ी के बारे में सोचते ही मन में एक छवि बन जाती है जहां सभी लोग एक साथ मिलकर, नाचते गाते हुए आग का चक्कर लगाते हैं और रेवड़ी या मक्का को आग में डालते हैं। लेकिन एक प्रश्न भी उठता है इतिहास और संस्कृति से यह त्यौहार कैसे जुड़ा हुआ है?
लोहड़ी का अर्थ क्या है
मकर संक्रांति से पहले वाली रात को सूर्यास्त के बाद मनाया जाने वाला पंजाब प्रांत का पर्व है लोहड़ी, जिसका का अर्थ है- ल (लकड़ी)+ ओह (गोहा यानी सूखे उपले)+ ड़ी (रेवड़ी)। इस पर्व के 20-25 दिन पहले ही बच्चे ‘लोहड़ी’ के लोकगीत गा-गाकर लकड़ी और उपले इकट्ठे करते हैं। फिर इकट्ठी की गई सामग्री को चौराहे/मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर आग जलाते हैं। आग के आसपास नाच गाना करके खुशी मनाते हैं।
लोहड़ी के त्यौहार उद्देश्य
सामान्तः त्यौहार प्रकृति में होने वाले परिवर्तन के साथ- साथ मनाये जाते हैं जैसे लोहड़ी में कहा जाता हैं कि इस दिन वर्ष की सबसे लम्बी अंतिम रात होती हैं इसके अगले दिन से धीरे-धीरे दिन बढ़ने लगता है. साथ ही इस समय किसानों के लिए भी उल्लास का समय माना जाता हैं. खेतों में अनाज लहलहाने लगते हैं और मोसम सुहाना सा लगता हैं, जिसे मिल जुलकर परिवार एवम दोस्तों के साथ मनाया जाता हैं. इस तरह आपसी एकता बढ़ाना भी इस त्यौहार का उद्देश्य हैं।
लोहड़ी का त्यौहार कब मनाया जाता हैं
लोहड़ी पौष माह की अंतिम रात को एवम मकर संक्राति की सुबह तक मनाया जाता हैं यह प्रति वर्ष मनाया जाता हैं. यह त्यौहार भारत देश की शान हैं. हर एक प्रान्त के अपने कुछ विशेष त्यौहार हैं. इन में से एक हैं लोहड़ी. लोहड़ी पंजाब प्रान्त के मुख्य त्यौहारों में से एक हैं जिन्हें पंजाबी बड़े जोरो शोरो से मनाते हैं. लोहड़ी की धूम कई दिनों पहले से ही शुरू हो जाती हैं. यह समय देश के हर हिस्से में अलग- अलग नाम से त्यौहार मनाये जाते हैं जैसे मध्य भारत में मकर संक्रांति, दक्षिण भारत में पोंगल का त्यौहार एवम काईट फेस्टिवल भी गुजरात एवं देश के कई हिस्सों में मनाया जाता हैं. मुख्यतः यह सभी त्यौहार परिवार जनों के साथ मिल जुलकर मनाये जाते हैं, जो आपसी बैर को खत्म करते है।
वर्ष 2024 में कब है लोहड़ी पर्व
पंचांग के अनुसार यह पर्व 13 जनवरी 2024 शनिवार के दिन मनाए जाएगा, परंतु पांचांग भेद से 14 जनवरी को भी यह पर्व मनाया जा रहा है। अधिकतर मतों में यह पर्व 13 जनवरी को मनाया जा रहा है। यह पर्व मकर संक्रांति के एक दिन पूर्व रात्रि में मनाया जाता है। हालांकि हिंदी भाषी राज्यों में मकर संक्रांति इस बार 15 जनवरी को रहेगी। अगले साल 15 जनवरी को सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करेंगे। इसलिए नए साल में लोहड़ी का पर्व 13 जनवरी को न मनाकर 14 जनवरी को मनाया जाएगा। लोहड़ी का पर्व मुहूर्त संध्याकाल 8 बजकर 57 मिनट तक रहेगा।
लोहड़ी के त्यौहार क्यों मनाया जाता है, इतिहास
पुराणों के आधार पर इसे सती के त्याग के रूप में प्रतिवर्ष याद करके मनाया जाता हैं. कथानुसार जब प्रजापति दक्ष ने अपनी पुत्री सती के पति महादेव शिव का तिरस्कार किया था और अपने जामाता को यज्ञ में शामिल ना करने से उनकी पुत्री ने अपनी आपको को अग्नि में समर्पित कर दिया था. उसी दिन को एक पश्चाताप के रूप में प्रति वर्ष लोहड़ी पर मनाया जाता हैं और इसी कारण घर की विवाहित बेटी को इस दिन तोहफे दिये जाते हैं और भोजन पर आमंत्रित कर उसका मान सम्मान किया जाता हैं. इसी ख़ुशी में श्रृंगार का सामान सभी विवाहित महिलाओ को बाँटा जाता हैं.
लोहड़ी के पीछे एक एतिहासिक कथा और भी हैं जिसे दुल्ला भट्टी के नाम से जाना जाता हैं. यह कथा अकबर के शासनकाल की हैं उन दिनों दुल्ला भट्टी पंजाब प्रान्त के सरदार थे, उन्हें पंजाब का नायक कहा जाता था. उन दिनों संदलबार नामक एक जगह थी, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा हैं. वहाँ लड़कियों की बाजारी होती थी. तब दुल्ला भट्टी ने इस का विरोध किया और लड़कियों को सम्मानपूर्वक इस दुष्कर्म से बचाया और उनकी शादी करवाकर उन्हें सम्मानित जीवन दिया. इस विजय के दिन को लोहड़ी के गीतों में गाया जाता हैं और दुल्ला भट्टी को याद किया जाता हैं। इन्ही पौराणिक एवम एतिहासिक कारणों के चलते पंजाब प्रान्त में लोहड़ी का उत्सव उल्लास के साथ मनाया जाता हैं।
लोहड़ी से जुड़ी मान्यताएं
लोहड़ी से कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। आइए जानते हैं इससे जुडी मान्यताओं पर-
* पंजाब में लोहड़ी का त्योहार दुल्ला भट्टी से जोड़कर मनाया जाता है। मुगल शासक अकबर के समय में दुल्ला भट्टी पंजाब में गरीबों के मददगार माने जाते थे। उस समय लड़कियों को गुलामी के लिए अमीरों को बेच दिया जाता था। कहा जाता है कि दुल्ला भट्टी ने ऐसी बहुत सी लड़कियों को मुक्त कराया और उनकी फिर शादी कराई।
* इस त्योहार के पीछे धार्मिक आस्थाएं भी जुड़ी हुई हैं। मान्यता है कि लोहड़ी पर आग जलाने को लेकर मान्यता है कि यह आग राजा दक्ष की पुत्री सती की याद में जलाई जाती है।
* बहुत से लोगों का मानना है कि लोहड़ी का नाम संत कबीर की पत्नी लोई के नाम पर पड़ा। पंजाब के कुछ ग्रामीण इलाकों में इसे लोई भी कहा जाता है ।
* लोहड़ी को पहले कई जगहों पर लोह भी बोला जाता था। लोह का अर्थ होता है लोहा। इसे त्योहार से जोड़ने के पीछे बताया जाता है कि फसल कटने के बाद उससे मिले अनाज की रोटियां लोहे के तवे पर सेंकी जाती हैं। इस तरह फसल के उत्सव के रूप में मनाई जाने वाली लोहड़ी का नाम लोहे से पड़ा।
* पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि लोहड़ी होलिका की बहन थीं। लोहड़ी अच्छी प्रवृत्ति वाली थीं। इसलिए उनकी पूजा होती है और उन्हीं के नाम पर त्योहार मनाया जाता है।
* कई जगहों पर लोहड़ी को तिलोड़ी के तौर पर भी जाना जाता था। यह शब्द तिल और रोड़ी यानी गुड़ से मिलकर बना है। बाद में तिलोड़ी को ही लोहड़ी कहा जाने लगा।
कैसे मनाया जाता हैं लोहड़ी का पर्व
पंजाबियों के विशेष त्यौहार हैं लोहड़ी जिसे वे धूमधाम से मनाते हैं. नाच, गाना और ढोल तो पंजाबियों की शान होते हैं और इसके बिना इनके त्यौहार अधूरे हैं।
पंजाबी लोहड़ी गीत : लोहड़ी आने के कई दिनों पहले ही युवा एवम बच्चे लोहड़ी के गीत गाते हैं. पन्द्रह दिनों पहले यह गीत गाना शुरू कर दिया जाता हैं जिन्हें घर-घर जाकर गया जाता हैं. इन गीतों में वीर शहीदों को याद किया जाता हैं जिनमे दुल्ला भट्टी के नाम विशेष रूप से लिया जाता हैं।
लोहड़ी खेती खलियान के महत्व : लोहड़ी में रबी की फसले कट कर घरों में आती हैं और उसका जश्न मनाया जाता हैं. किसानों का जीवन इन्ही फसलो के उत्पादन पर निर्भर करता हैं और जब किसी मौसम के फसले घरों में आती हैं हर्षोल्लास से उत्सव मनाया जाता हैं. लोहड़ी में खासतौर पर इन दिनों गन्ने की फसल बोई जाती हैं और पुरानी फसले काटी जाती हैं. इन दिनों मुली की फसल भी आती हैं और खेतो में सरसों भी आती हैं. यह ठण्ड की बिदाई का त्यौहार माना जाता हैं।
लोहड़ी एवम पकवान : भारत देश में हर त्यौहार के विशेष व्यंजन होते हैं. लोहड़ी में गजक, रेवड़ी, मुंगफली आदि खाई जाती हैं और इन्ही के पकवान भी बनाये जाते हैं. इसमें विशेषरूप से सरसों का साग और मक्का की रोटी बनाई जाती हैं और खाई एवम प्यार से अपनों को खिलाई जाती हैं।
लोहड़ी बहन बेटियों का त्यौहार : इस दिन बड़े प्रेम से घर से बिदा हुई बहन और बेटियों को घर बुलाया जाता हैं और उनका आदर सत्कार किया जाता हैं. पुराणिक कथा के अनुसार इसे दक्ष की गलती के प्रयाश्चित के तौर पर मनाया जाता हैं और बहन बेटियों का सत्कार कर गलती की क्षमा मांगी जाती हैं. इस दिन नव विवाहित जोड़े को भी पहली लोहड़ी की बधाई दी जाती हैं और शिशु के जन्म पर भी पहली लोहड़ी के तोहफे दिए जाते हैं।
लोहड़ी में अलाव/ अग्नि क्रीड़ा का महत्व : लोहड़ी के कई दिनों पहले से कई प्रकार की लकड़ियाँ इक्कट्ठी की जाती हैं. जिन्हें नगर के बीच के एक अच्छे स्थान पर जहाँ सभी एकत्र हो सके वहाँ सही तरह से जमाई जाती हैं और लोहरी की रात को सभी अपनों के साथ मिलकर इस अलाव के आस पास बैठते हैं. कई गीत गाते हैं, खेल खेलते हैं, आपसी गिले शिक्वे भूल एक दुसरे को गले लगाते हैं और लोहड़ी की बधाई देते हैं. इस लकड़ी के ढेर पर अग्नि देकर इसके चारों तरफ परिक्रमा करते हैं और अपने लिए और अपनों के लिये दुआयें मांगते हैं. विवाहित लोग अपने साथी के साथ परिक्रमा लगाती हैं. इस अलाव के चारों तरफ बैठ कर रेवड़ी, गन्ने, गजक आदि का सेवन किया जाता हैं।
लोहड़ी के साथ मनाते हैं नव वर्ष : किसान इन दिनों बहुत उत्साह से अपनी फसल घर लाते हैं और उत्सव मनाते हैं. लोहड़ी को पंजाब प्रान्त में किसान नव वर्ष के रूप में मनाते हैं. यह पर्व पंजाबी और हरियाणवी लोग ज्यादा मनाते हैं और यही इस दिन को नव वर्ष के रूप में भी मनाते हैं।
लोहड़ी का आधुनिक रूप : आज भी लोहड़ी की धूम वैसी ही होती हैं बस आज जश्न ने पार्टी का रूप ले लिया हैं. और गले मिलने के बजाय लोग मोबाइल और इन्टरनेट के जरिये एक दुसरे को बधाई देते हैं. बधाई सन्देश भी व्हाट्स एप और मेल किये जाते हैं।
लोहड़ी की विशेषता
* लोहड़ी का त्यौहार सिख समूह का पावन त्यौहार है और इसे सर्दियों के मौसम में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
* पंजाब प्रांत को छोड़कर भारत के अन्य राज्यों समेत विदेशों में भी सिख समुदाय इस त्यौहार को बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं।
* लोहड़ी का पर्व श्रद्धालुओं के अंदर नई ऊर्जा का विकास करता है और साथ ही में खुशियों की भावना का भी संचार होता है अर्थात यह त्यौहार प्रमुख त्योहारों में से एक है।
* इस पावन त्यौहार के दिन देश के विभिन्न राज्यों में अवकाश का प्रावधान है और इस दिन को लोग यादगार बनाते हैं।
* इस पर्व के दिन लोग मक्के की रोटी और सरसों का साग बनाकर खाते हैं और यही इस त्यौहार का पारंपरिक व्यंजन है।
* अलाव जलाकर चारों तरफ लोग बैठते हैं और फिर गजक, मूंगफली, रेवड़ी आदि खाकर इस त्यौहार का आनंद उठाते हैं।
* इस पावन पर्व का नाम लोई के नाम से पड़ा है और यह नाम महान संत कबीर दास की पत्नी जी का था।
* यह त्यौहार नए साल की शुरुआत में और सर्दियों के अंत में मनाया जाता है।
* इस त्यौहार के जरिए सिख समुदाय नए साल का स्वागत करते हैं और पंजाब में इसी कारण इसे और भी उत्साह पूर्ण तरीके से मनाया जाता है।
* किसान भाई बहनों के लिए बियर पावन पर्वत अत्यधिक शुभ होता है और इस पर्व के बीत जाने के बाद नई फसलों का कटाई का काम शुरू किया जाता है।
लोहड़ी के त्यौहार को पुरे उत्साह से मनाया जाता हैं. देश के लोग विदेशों में भी बसे हुए हैं जिनमे पंजाबी ज्यादातर विदेशों में रहते हैं इसलिये लोहड़ी विदेशों में भी मनाई जाती हैं. खासतौर पर कनाडा में लोहड़ी का रंग बहुत सजता हैं। नाच-गाने के लिए मशहूर यह त्यौहार किसी धर्म से अधिक पंजाब की संस्कृति से जुड़ा है इसलिए इस त्योहार में सिर्फ एक ही धर्म के लोग हिस्सा नहीं लेते बल्कि यह हर धर्म का त्योहार है और यही इस त्योहार की खूबसूरती है। धर्म की सीमा के और जात पात के बंधनों से मुक्त लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाएं।
”इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।”
[URIS id=9218]