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Good morning : परीक्षा फोबिया : बच्चों में नजर आने वाला सबसे कॉमन फोबिया, आइए इस फोबिया के लक्षण, कारण और इससे निपटने के उपाय जानते हैं।

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भारत में परीक्षाएँ एक अलग ही माहौल बनाती हैं। माता-पिता से लेकर छात्रों तक, हर कोई गहरे तनाव में है और गहराई में जाएं तो इसका कारण प्रतिस्पर्धा और तुलना है। जहां माता-पिता अपनी सामाजिक स्थिति को लेकर तनाव में रहते हैं, वहीं मासूम बच्चे अपने माता-पिता को इस दौर से गुजरते हुए देखकर तनाव में रहते हैं। इसके अलावा साथियों का दबाव और स्कूल का दबाव भी स्थिति को बदतर बना देता है। परीक्षा का डर बच्चों में नजर आने वाला सबसे कॉमन फोबिया है। भले ही यह फोबिया आम हो, लेकिन यह बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को काफी प्रभावित करता है। अधिकतर बच्चे परीक्षा से पहले इस फोबिया का सामना करते हैं। इसलिए इस दौरान बच्चों को माता-पिता के सहयोग की खास जरूरत होती है। आइए इस फोबिया के लक्षण, कारण और उपाय जानते हैं।

परीक्षा का डर एक आम बात है जो आप परीक्षा में शामिल होने वाले हर छात्र में पा सकते हैं। हालाँकि यह बहुत असामान्य नहीं है लेकिन जब आप अपनी परीक्षा लिखते हैं तो इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इनमें से कुछ मुख्य कारण तनाव और माता-पिता और शिक्षकों से अपेक्षाएं हैं। कहते हैं ‘डर से मत डर, डर तो मन की सिर्फ एक गलत फहमी है, क्योंकि डर के आगे तो जीत है’। लेकिन अगर फिर भी डर ज्यादा ही किसी भी व्यक्ति के अंदर समाने लगे, तो इसे फोबिया कहते हैं। ऐसे अधिकांश मामले उन छात्रों में पाए जा सकते हैं जो बोर्ड परीक्षाओं में शामिल होंगे। यदि छात्रों को परीक्षा का डर या तनाव रहेगा तो वे अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाएंगे। डर आमतौर पर तनाव का कारण बनता है, जिससे छात्रों में चिंता और अवसाद विकसित होता है। इसका परिणाम अंततः परीक्षा में ख़राब प्रदर्शन के रूप में सामने आता है। ऐसा मना जाता है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं फोबिया का शिकार ज्यादा होती हैं। फोबिया भी अलग-अलग तरह के होते हैं, लेकिन आज इस आर्टिकल में विशेष रूप से समझेंगे एग्जाम फोबिया क्या है? इसके बारे में जानेंगे। दरअसल साल 2020 में दि इंटरनैश्नल जर्नल ऑफ इंडियन सायकोलॉजी में पब्लिश्ड एक रिपोर्ट के अनुसार अंडर ग्रैजुएट स्टूडेंट्स में एग्जाम फोबिया अत्यधिक देखा जाता है। 120 अंडर ग्रैजुएट स्टूडेंट्स (60 लड़के एवं 60 लड़कियां) पर किये गए सर्वे के अनुसार 28.18 प्रतिशत लड़के एवं 7.65 प्रतिशत लड़कियों में एग्जाम एंग्जाइटी देखी गई। तो चलिए एग्जाम फोबिया से जुड़ी सभी प्रश्नों का उत्तर ढूंढते हैं और एग्जाम फोबिया से दूर रहते हैं।

क्या है एग्जाम फोबिया?
एग्जाम फोबिया को एग्जामोफोबिया भी कहा जाता है। दरअसल फरवरी, मार्च और अप्रैल महीने को एग्जाम मंथ कहा जाता है और इस दौरान बच्चों का ध्यान खासतौर से पढ़ाई पर होता है। स्टूडेंट्स दिन-रात पढ़ाई में अपना ध्यान लगाते हैं, तो वहीं पेरेंट्स भी बच्चों को समय बर्बाद ना करने की सलाह और एग्जाम में टॉप करने या अच्छे मार्क्स को लेकर लगातार दवाब बनाते रहते हैं। अब ऐसी स्थिति होने पर उनमें डर-घबराहट तो होती है और परेशानी एग्जाम फोबिया बनने लगती है। एग्जाम फोबिया किसी भी उम्र के स्टूडेंट्स में हो सकती है। एग्जाम फोबिया एक ऐसा डर है, जो परीक्षाओं के समय स्टूडेंट्स पर हावी हो जाता है।

एग्जाम फोबिया के लक्षण क्या हैं?
एग्जामोफोबिया के निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं। जैसे:
* तनाव (Tension) में रहना
* बच्चे का स्वभाव चिड़चिड़ा (Irritated) होना
* बिना कारण गुस्सा करना
* घबराहट में रहना
* हताश महसूस करना
* नेगेटिव सोच रखना
* परीक्षा से बचने की कोशिश करना
* हार्ट बीट (Heart Beat) सामान्य से ज्यादा रहना
* पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई होता है
* याद की हुई चीजें भी भूल जाना

एग्जाम फोबिया के कारण क्या हैं?
एग्जामोफोबिया के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं। इन कारणों में शामिल है:
* बच्चों पर एग्जाम और रिजल्ट को लेकर जरूरत से ज्यादा दवाब डालना।
* कई बार बच्चों को परिक्षण में फेल होने का डर भी इतना ज्यादा होता है कि उनमें एग्जाम या पढ़ाई को लेकर फोबिया हो जाता है।
* एग्जाम की तैयारी ठीक तरह से नहीं होना।
* रिवीजन ना करना।
* एग्जाम डेट नजदीक आने के साथ परेशानी बढ़ना।
* आत्म विश्वास की कमी होना।
* आसपास का माहौल, परिवार और समाज का पढ़ाई को लेकर दबाव।
* बोर्ड एग्जाम या हाइयर एजुकेशन का कट-ऑफ ज्यादा होना।
इन कारणों के अलावा और भी एग्जामोफोबिया के कारण हो सकते हैं। लेकिन प्रायः बच्चों पर पेरेंट्स का दबाव या जरूरत से ज्यादा उम्मीद ही एग्जाम फोबिया के कारण बन सकते हैं।

एग्जाम फोबिया से कैसे दूर रहें?
एग्जामोफोबिया से बचने के लिए यहां दिए जा रहें हैं गुरुमंत्र-
योग, एक्सरसाइज या प्राणायाम : रेग्यूलर पढ़ाई को लेकर या सिर्फ एग्जाम के वक्त अत्यधिक दबाव महसूस करते हैं, तो योग, एक्सरसाइज या प्राणायाम स्टूडेंट्स के लिए बेहद लाभकारी माने जाते हैं। एक्सरसाइज के तौर पर बॉडी स्ट्रेचिंग करने वाली एक्सरसाइज या घुटनों को नाक के पास लाना। वहीं प्राणायाम के लिए डीप ब्रीदिंग भी की जा सकती है। एग्जाम के वक्त के दौरान होने वाले स्ट्रेस को प्राणायाम की मदद से दूर किया जा सकता है। इसके अलावा बच्चों को सुबह उठकर खुली हवा में टहलने के लिए प्रेरित करें। ऐसा करने से शरीर में पॉजिटिव एनर्जी बनी रहती है, पढ़ाई में मन लगता है और पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित में भी सहायता मिलती है एवं याददाश्त भी तेज होती है।
डायट का रखें ख्याल : स्टूडेंट्स को एग्जामोफोबिया से बचने के लिए और रेग्यूलर लाइफ स्टाइल हेल्दी रखने के लिए हेल्दी डायट  की अहम भूमिका होती है। वहीं एग्जाम के दौरान बॉडी और ब्रेन को एक्स्ट्रा न्यूट्रीशन की जरूरत पड़ती है। इसलिए फ्रूट्स, फ्रेश जूस, हरी सब्जियां, नारियल पानी, पनीर, दूध, दही, छांछ एवं डार्क चॉकलेट जैसी चीजें जरूर खिलाएं। इनसबके के साथ पानी भी खूब पीने को कहें। वहीं स्ट्रीट फूड, फास्ट फूड या जंक फूड से दूर रखें।
स्ट्रेटजी करें प्लान : एग्जाम फोबिया से बचने के लिए स्ट्रेटजी प्लान करना बेहद जरूरी है। अगर शुरुआत से ही पढ़ाई की प्लानिंग कर ली जाए, तो ये बच्चों को लिए थकाने वाला नहीं होता है और किसी भी उम्र के स्टूडेंट या किसी भी क्लास में पढ़ने वाले बच्चों को एग्जामोफोबिया से बचाए रखता है। यह भी ध्यान रखना चाहिए की रटने की बजाये समझने और वक्त-वक्त पर रिवीजन करने की हैबिट बनायें। छोटे बच्चों को गाइडेंस की जरूरत पड़ती है, लेकिन हाइयर सेकेंड्री से ऊपर की कक्षा में पढ़ने में बच्चों को खुद से स्टडी टाइमटेबल बनाना चाहिए। हां, इसमें वो अपने माता-पिता, घर के बड़े सदस्य या फिर टीचर से मदद ले सकते हैं। पेरेंट्स और बच्चों को यह हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि रिवीजन जरूर होनी चाहिए।
जल्दी रिवीजन करना शुरू करें: रिवीजन को कभी भी 16वें घंटे के लिए न रखें। यह सुझाव दिया जाता है कि परीक्षा से दो दिन पहले रिवीजन शुरू कर देना चाहिए और परीक्षा से एक रात पहले विश्राम के लिए रखा जाना चाहिए और छात्रों को शांत रहने के लिए ध्यान करने की कोशिश करनी चाहिए और परीक्षा से एक रात पहले केवल सूत्रों और समीकरणों का अध्ययन करना चाहिए।
सिर्फ परसेंटेज के बारे में ना सोचे : एग्जाम फोबिया से बचने के उपाय इसे जरूर ध्यान रखें कि हमेशा परसेंटेज के बारे में चिंता ना करें। ये स्टूडेंट्स और पेरेंट्स दोनों के लिए जरूरी है। बेहतर होगा बेस्ट रिजल्ट के लिए पढ़ाई मन से करें। इसलिए परिवार के सदस्यों को बच्चों के दिमाग में परसेंटेज का खौफ ना डालें। यही खौफ फोबिया जैसा रूप ले सकता है, जो बच्चों के साथ-साथ माता-पिता के लिए खतरनाक हो सकता है।
अपनी खुद की समय सारिणी बनाएं: जब भारतीय छात्रों की बात आती है, तो अक्सर समाज और माता-पिता द्वारा उनकी तुलना दूसरों से की जाती है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक व्यक्ति अलग है और प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता को ध्यान में रखते हुए अध्ययन के घंटों की अपनी समय सारिणी या दिनचर्या बनानी चाहिए।
एक योजना बनाएं: चीजों की योजना बनाना हमेशा अच्छा होता है। परीक्षा के दौरान विषय को समझने का सबसे अच्छा तरीका फ्लो चार्ट, ग्राफ़ और चित्र हैं। यह आपको विषय को आसानी से समझने में मदद करता है और वर्षों तक दिमाग में भी रहता है।
विषयों को मिलाएं: कभी भी केवल एक ही विषय पर ध्यान केंद्रित न करें। ऐसे मामलों में, अन्य विषय छूट जाते हैं और अंतिम समय में आप कुछ अध्याय चूक सकते हैं। संतुलन बनाने के लिए दिनचर्या बनाने और प्रतिदिन या वैकल्पिक दिनों में प्रत्येक विषय पर कुछ समय समर्पित करने की सलाह दी जाती है।
ब्रेक के लिए समय आवंटित करें: लंबे समय तक लगातार पढ़ाई करना न केवल थका देने वाला है बल्कि आपके स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है। अपने शरीर को आराम देने के लिए हर एक घंटे के बाद ब्रेक लेना महत्वपूर्ण है। अपने शरीर को तरोताजा करने की कोशिश करें, शरीर को तरोताजा करने के लिए ब्रेक के दौरान पानी/जूस पियें। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक स्ट्रेचिंग से शरीर के बॉडी सर्कुलेशन को बेहतर बनाने में मदद मिलती है।
जरूरत से ज्यादा एक्सपेक्टेशन ना रखें : कई बार पेरेंट्स, घर के सदस्य या सोशल सर्कल के कारण पेरेंट्स अपने बच्चे से अत्यधिक उम्मीद लगा बैठते हैं। पेरेंट्स को अपने बच्चों की क्षमताओं को समझना जरूरी है। इसलिए बेहतर होगा कि आप अपने बच्चों की पसंद और ना पसंद को समझें। आज के वक्त में सिर्फ डॉक्टर, इंजीनियर या फिर बैंक जॉब के अलावा कई ऐसे विकल्प हैं, जिसमें बच्चे दिल लगाकर मेहनत करेंगे और उनमें कोई फोबिया भी नहीं होगा। शायद अब वो वक्त नहीं है, जब कहा करते थें कि ‘पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे महान और खेलोगे कूदोगे तो बनोगे ख़राब’। इसलिए बच्चों को मौका दें वो जरूर अच्छा करेंगे।
तुलना करने से बचें : ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों की तुलना दूसरे बच्चों से कर बैठते हैं, जो नहीं करना चाहिए। तुलना करने से बच्चों पर सिर्फ दबाव पड़ता है, जिसका रिजल्ट कुछ भी नहीं है। तुलना करने की बजाये उन्हें समझाएं। कहते हैं प्यार से समझने पर बच्चे जल्दी समझते हैं। उनके जीवन का उदेश्य क्या है, यह समझाएं। जिस तरह कहते हैं ना घर बच्चों की सबसे पहली पाठशाला है, ठीक वैसे ही तुलना करने की बजाये उन्हें अच्छी शिक्षा दें।
रिलैक्स टाइम जरूर दें : पढ़ाई के बीच में बच्चों को ब्रेक जरूर दें। लगातार बैठकर पढ़ते-पढ़ते बच्चे भी परेशान हो सकते हैं। इसलिए रिलैक्स करने के लिए स्टूडेंट्स अलग-अलग तरीका जरूर अपनाएं। जैसे: डीप ब्रीदिंग करें, थोड़ा वॉक करें और आंखों को कुछ मिनटों तक बंद करने की सलाह दें। बच्चों को रिलैक्स करने के दौरान ब्रेन गेम खेलने की आदत डालें। ऐसे सिचुएशन में पेरेंट्स ही बच्चों की मदद कर सकते हैं।
माता-पिता के लिए टिप्स: अपने बच्चों को प्रोत्साहित करें! माता-पिता के पास अंतर्निहित डर को संबोधित करने की क्षमता होती है जो परीक्षण लेने के साथ उपस्थित हो सकती है. एक गहरे स्तर पर, अवचेतन रूप से, एक छात्र विभिन्न कारणों से विफलता से डर सकता है. दोस्तों के लिए गूंगा दिखने का डर हो सकता है. सर्वश्रेष्ठ स्कूल में नहीं जा रहा है या माता-पिता की उम्मीदों को पूरा नहीं कर सकता है. माता-पिता के लिए बिना शर्त समर्थन और प्रोत्साहित करने के लिए माता-पिता के लिए एक बड़ी मदद है. माता-पिता, अपने बच्चों को यह बताने दें कि उनका ग्रेड उनके मूल्य का निर्धारण नहीं करता है. अपने बच्चे में विश्वास करो।

यदि आपको परीक्षा का डर है, तो आप इसे कम भयावह बनाने के लिए कुछ चीजें कर सकते हैं। पहला कदम यह सीखना है कि परीक्षा के दौरान अपनी भावनाओं को कैसे कंट्रोल किया जाए। यदि आप तनावग्रस्त महसूस करते हैं, तो आपको किसी गुरु या अपने माता-पिता से बात करनी चाहिए और अपनी चिंताओं को साझा करना चाहिए कि आप कैसा महसूस करते हैं आपके डर और तनाव पर काबू पाने में सबसे अच्छी वे ही आपकी मदद कर सकते हैं।

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