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Good morning : अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस : यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता।  

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महिलाओं को आधी आबादी कहा गया है और इस दुनिया में मौजूद हर एक महिला की ताकत का जश्न मनाने के लिए प्रत्येक वर्ष ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ मनाया जाता है. जी हां, दुनिया भर में 08 मार्च का दिन महिलाओं को समर्पित है. कहने का मतलब है कि 08 मार्च को ‘इंटरनेशनल वुमेंस डे’ सेलिब्रेट किया जाता है. आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे निकल रही हैं. सफलता हासिल कर रही हैं. अपने घर-परिवार के दायित्यों, कार्यों को निभाने के साथ ही ऑफिस या अन्य कार्यों की जिम्मेदारियां भी बखूबी निभा रही हैं. समाज, दुनिया के प्रति महिलाओं के योगदान की सराहना जितनी भी की जाए, वो कम है. जानते हैं, कब और कैसे शुरू हुआ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का सिलसिला और क्या है इस साल की थीम?

कहते है – “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता। ” अर्थात जहाँ नारी का सम्मान होता है वहां देवता निवास करते है। नारियो के इसी सम्मान का जश्न मनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर साल 08 मार्च को मनाया जाता है। आज के समय महिलाएं न केवल आत्मनिर्भर है बल्कि महिलाएं हर क्षेत्र में तरक्की कर रही है। हालांकि महिलाओं ने देश की तरक्की के लिए प्रत्येक क्षेत्र ने योगदान दिया है चाहे वह खेल का मैदान हो, कला का क्षेत्र हो या फिर शिक्षा का क्षेत्र। वैसे अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है, परंतु जब इस मुद्दे पर एकांत में विचार किया जाए, तो मन में एक सवाल जन्म लेता है कि आखिर ऐसी क्या दिक्कत थी, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं को सम्मान देने के लिए एक दिन की घोषणा करनी पड़ी? क्या इसका उद्देश्य शुरुआत से ही केवल महिलाओं को सम्मान देना था, या उन्होने अपनी परेशानियों से तंग आकार आक्रोश में इस दिन को मनाना शुरू किया?क्या भारत की ही तरह संपूर्ण विश्व में भी महिलाओं को अपने अधिकार अपने सम्मान को पाने के लिए चुनोतियों का सामना करना पड़ा ? आज हम अपने इस आर्टिकल से आपके इन सवालों का जवाब देने और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के संबंध में संपूर्ण जानकारी देने का प्रयत्न कर रहे है, उम्मीद करते है कि यह आपके लिए उपयोगी होगा।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की जानकारी
नाम : अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस
कब मनाया जाता है : 08 मार्च
शुरुआत कब हुई : सन 1911 में
शुरुआत कहां हुई : न्यूयॉर्क
इस साल कौन सा महिला दिवस है : 113वां
विषय 2024 : साल 2024 में इस दिन को Inspire Inclusion (एक ऐसी दुनिया,जहां हर किसी को बराबर का हक और सम्मान मिले) थीम के साथ मनाया जाएगा।

अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस 
नारी, यह कोई समान्य शब्द नहीं बल्कि एक ऐसा सम्मान हैं जिसे देवत्व प्राप्त हैं. नारियों का स्थान वैदिक काल से ही देव तुल्य हैं इसलिए नारियों की तुलना देवी देवताओं और भगवान से की जाती हैं. जब भी घर में बेटी का जन्म होता हैं, तब यही कहा जाता हैं कि घर में लक्ष्मी आई हैं. जब घर में नव विवाहित बहु आती हैं, तब भी उसकी तुलना लक्ष्मी के आगमन से की जाती हैं. क्या कभी आपने कभी सुना हैं बेटे के जन्म कर ऐसी तुलना की गई हो? कि घर में कुबेर आये हैं या विष्णु का जन्म हुआ हैं, नहीं. यह सम्मान केवल नारी को प्राप्त हैं जो कि वेदों पुराणों से चला आ रहा हैं जिसे आज के समाज ने नारी को वह सम्मान नहीं दिया जो जन्म जन्मान्तर से नारियों को प्राप्त हैं. लेकिन समाज के कई तबकों में हमेशा से ही नारियों को कमजोर कहा जाता हैं और उन्हें घर में खाना बनाकर पालन पोषण करने वाली कहा जाता हैं, उसे जन्म देने वाली एक अबला नारी के रूप में देखा जाता हैं और यह कहा जाता हैं कि नारी को शिक्षा की आवश्यक्ता ही नहीं, जबकि जिस भगवान को समाज पूजता हैं वहां नारी का स्थान भिन्न हैं. माँ सरस्वती जो विद्या की देवी हैं वो भी एक नारी हैं और यह समाज नारी को ही शिक्षा के योग्य नहीं समझता. माँ दुर्गा जिसने राक्षसों का वध करने के लिए जन्म लिया वह भी एक नारी हैं और यह समाज नारी को अबला समझता हैं. कहाँ से यह समाज नारी के लिए अबला, बेचारी जैसे शब्द लाता हैं एवम नारि को शिक्षा के योग्य नहीं मानता, जबकि किसी पुराण, किसी वेद में नारि की वह स्थिती नहीं जो इस समाज ने नारी के लिए तय की हैं. ऐसे में जरुरत हैं महिलाओं को अपनी शक्ति समझने की और एक होकर एक दुसरे के साथ खड़े होकर स्वयम को वह सम्मान दिलाने की, जो वास्तव में नारी के लिए बना हैं. आज जो औरत की हालत हैं वो किसी से नहीं छिपी हैं और ये हाल केवल भारत का नहीं, पुरे दुनियाँ का हैं. जहाँ नारि को उसका ओहदा नहीं मिला हैं. एक दिन उसके नाम कर देने से कर्तव्य पूरा नहीं होता. आज के समय में नारी को उसके अस्तित्व एवम अस्मिता के लिए प्रतिपल लड़ना पड़ता हैं. यह एक शर्मनाक बात हैं कि आज हमारे देश में बेटी बचाओ जैसी योजनाये हैं, आज घर में बेटी को जन्म देने के लिए सरकार द्वारा दबाव बनाया जा रहा हैं क्या बेटियाँ ऐसा जीवन सोचकर आती हैं जहाँ उसके माँ बाप केवल एक डर के कारण उसे जीवन देते हैं. समाज के नियमो ने समाज में कन्या के स्थान को कमजोर किया हैं जिन्हें अब बदलने की जरुरत हैं. आज तक जो हो रहा हैं उसे बदलने की जरुरत हैं जिसके लिए सबसे पहले कन्या को जीवन और उसके बाद शिक्षा का अधिकार मिलना जरुरी हैं तब ही इस देश में महिला की स्थिती में सुधार आएगा।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (आईडब्ल्यूडी) का एक समृद्ध इतिहास है जो एक सदी से भी अधिक समय से फैला हुआ है, जो एक दिन के विरोध से लैंगिक समानता के लिए वैश्विक आंदोलन तक विकसित हुआ है। यहां इसकी यात्रा की एक झलक दी गई है:
शुरूआती साल : 1908: पहला राष्ट्रीय महिला दिवस 28 फरवरी को न्यूयॉर्क शहर में सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका द्वारा आयोजित किया गया था। यह दिन 1908 के कपड़ा श्रमिकों की हड़ताल की याद में मनाया जाता है, जहां महिलाओं ने अनुचित कामकाजी परिस्थितियों और कम वेतन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था।
1910: जर्मन समाजवादी और महिला अधिकार कार्यकर्ता क्लारा ज़ेटकिन ने कोपेनहेगन में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी महिला सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की स्थापना का प्रस्ताव रखा। प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया है, लेकिन कोई विशेष तारीख नहीं चुनी गई है।
1911: पहला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 19 मार्च को ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में मनाया गया। यह महिलाओं के मताधिकार, बेहतर कामकाजी परिस्थितियों और समान अधिकारों की मांग करते हुए रैलियों, मार्चों और प्रदर्शनों द्वारा चिह्नित है।
विकास और पहचान : 1913: IWD की तारीख आधिकारिक तौर पर 8 मार्च स्थापित की गई। यह न्यूयॉर्क शहर में 1857 के कपड़ा श्रमिकों की हड़ताल की सालगिरह के साथ मेल खाता है।
1914-1918: प्रथम विश्व युद्ध ने कई देशों में IWD के उत्सव को बाधित किया। हालाँकि, यह कार्यबल में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी का मार्ग भी प्रशस्त करता है, जिससे महिलाओं के मताधिकार की लड़ाई में योगदान मिलता है।
1945: पुरुषों और महिलाओं के लिए समानता के सिद्धांत को स्थापित करते हुए संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर किए गए। आईडब्ल्यूडी लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण पर संयुक्त राष्ट्र के काम का केंद्र बन गया है।
1975: संयुक्त राष्ट्र ने आधिकारिक तौर पर IWD को मान्यता दी और इसे सालाना मनाना शुरू किया।
आधुनिक युग : 1977: संयुक्त राष्ट्र महासभा ने महिला अधिकारों और अंतर्राष्ट्रीय शांति के लिए संयुक्त राष्ट्र दिवस की घोषणा करते हुए एक प्रस्ताव अपनाया। यह दिन सदस्य देशों द्वारा चुने गए वर्ष के किसी भी दिन मनाया जाता है।
1995: महिलाओं पर चौथे विश्व सम्मेलन में बीजिंग घोषणा और कार्रवाई मंच को अपनाया गया। यह ऐतिहासिक दस्तावेज़ लैंगिक समानता हासिल करने के लिए एक वैश्विक एजेंडा तय करता है।
2000: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने महिला, शांति और सुरक्षा पर संकल्प 1325 को अपनाया। यह प्रस्ताव महिलाओं और लड़कियों पर सशस्त्र संघर्ष के विशिष्ट प्रभाव को पहचानता है और शांति निर्माण प्रयासों में उनकी बढ़ती भागीदारी का आह्वान करता है।
2015: सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाए गए। एसडीजी 5 विशेष रूप से लैंगिक समानता हासिल करने और सभी महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाने का आह्वान करता है।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का उद्देश्य
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को मनाने के उद्देश्य समय के साथ और महिलाओं की समाज में स्थिति बदलने के साथ परिवर्तित होते आ रहे है. शुरुआत में जब 19 वीं शताब्दी में इसकी शुरुआत की गई थी, तब महिलाओं ने मतदान का अधिकार प्राप्त किया था, परंतु अब समय परिवर्तन के साथ इसके उद्देश्य कुछ इस प्रकार है.
*  महिला दिवस मनाने का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य महिला और पुरुषो में समानता बनाए रखना है. आज भी दुनिया में कई हिस्से ऐसे है, जहां महिलाओं को समानता का अधिकार उपलब्ध नहीं है. नौकरी में जहां महिलाओं को पदोन्नति में बाधाओं का सामना करना पड़ता है, वहीं स्वरोजगार के क्षेत्र में महिलाए आज भी पिछड़ी हुई है।
*  कई देशों में अब भी महिलाएं शिक्षा और स्वास्थ्य की दृष्टि से पिछड़ी हुई है. इसके अलावा महिलाओं के प्रति हिंसा के मामले भी अब भी देखे जा सकते है. महिला दिवस मनाने के एक उद्देश्य लोगों को इस संबंध में जागरूक करना भी है।
*  राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में अब भी महिलाओं की संख्या पुरुषो से कई पीछे है और महिलाओं का आर्थिक स्तर भी पिछड़ा हुआ है. महिला दिवस मनाने का एक उद्देश्य महिलाओं को इस दिशा में जागरूक कर उन्हे भविष्य में प्रगति के लिए तैयार करना भी है।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का महत्व
प्रतिवर्ष 8 मार्च को मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (IWD) अत्यधिक वैश्विक महत्व रखता है। यह निम्नलिखित के लिए एक महत्वपूर्ण दिन के रूप में कार्य करता है:
उपलब्धियों को पहचानें : पूरे इतिहास में महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक उपलब्धियों को स्वीकार करें और उनका जश्न मनाएं। इसमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी से लेकर कला और राजनीति तक विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के अक्सर नजरअंदाज किए गए योगदान को मान्यता देना शामिल है। लैंगिक समानता की दिशा में हुई प्रगति पर प्रकाश डालिए। IWD महिलाओं के मताधिकार, शिक्षा और आर्थिक अवसरों जैसे क्षेत्रों में की गई प्रगति की याद दिलाता है।
बदलाव के पक्षधर : दुनिया भर में महिलाओं और लड़कियों द्वारा सामना की जा रही लगातार लैंगिक असमानताओं और भेदभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाना। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और समान वेतन तक पहुंच की कमी जैसी चुनौतियाँ शामिल हैं। लैंगिक समानता की दिशा में प्रगति में तेजी लाने और सभी महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाने के लिए कार्रवाई का आह्वान। IWD व्यक्तियों, सरकारों और संगठनों को लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाली नीतियों और पहलों को लागू करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
भविष्य को प्रेरित करें : महिलाओं और लड़कियों के लिए अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने के लिए प्रेरणा दिवस के रूप में कार्य करें। आईडब्ल्यूडी महिलाओं को अपनी कहानियों, अनुभवों और उपलब्धियों को साझा करने और दूसरों को अपने सपनों को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करने के लिए एक मंच प्रदान करता है। लड़कियों और युवा महिलाओं को शिक्षित और सशक्त बनाने के महत्व को बढ़ावा देना। आईडब्ल्यूडी महिलाओं को समाज में पूरी तरह से भाग लेने और सतत आर्थिक विकास में योगदान करने में सक्षम बनाने में शिक्षा और कौशल विकास की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालता है।
वैश्विक एकजुटता एल : विभिन्न संस्कृतियों और पृष्ठभूमियों में महिलाओं और लड़कियों के बीच वैश्विक एकजुटता की भावना को बढ़ावा देना। IWD समानता की लड़ाई में दुनिया भर में महिलाओं के साझा अनुभवों और सामान्य लक्ष्यों पर जोर देता है। लैंगिक असमानताओं को दूर करने और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए व्यक्तियों, संगठनों और सरकारों के बीच सहयोग और साझेदारी को प्रोत्साहित करें।
कुल मिलाकर, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एक महत्वपूर्ण घटना है जो सकारात्मक परिवर्तन को उत्प्रेरित करती है और लैंगिक समानता के लिए चल रहे संघर्ष की याद दिलाती है। यह महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाने, निरंतर असमानताओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने और सभी के लिए अधिक न्यायपूर्ण और समान दुनिया की दिशा में कार्रवाई का आह्वान करने का दिन है।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस थीम 2024
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2024 का विषय “उसकी गिनती करें: आर्थिक सशक्तिकरण के माध्यम से लैंगिक समानता में तेजी लाना” है । यह विषय वैश्विक स्तर पर लैंगिक समानता हासिल करने में एक केंद्रीय तत्व के रूप में महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के महत्व को रेखांकित करता है। महिलाओं को कमाने, सीखने और नेतृत्व करने के समान अवसर प्रदान करके, पूरा समुदाय आगे बढ़ सकता है। महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र के 68वें आयोग के प्राथमिकता विषय के अनुरूप, “काउंट हर इन” दुनिया भर में महिलाओं और लड़कियों के लिए आर्थिक समावेशन को बढ़ाने के रास्ते तलाशने पर केंद्रित है। महत्वपूर्ण प्रगति के बावजूद, महिलाओं को अभी भी अर्थव्यवस्था में समान भागीदारी हासिल करने में काफी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। यह विषय महिलाओं और लड़कियों के लिए शिक्षा, रोजगार के अवसरों, वित्तीय सेवाओं और साक्षरता तक समान पहुंच के महत्वपूर्ण पहलुओं पर जोर देता है। लैंगिक समानता हासिल करने के लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि महिलाओं और लड़कियों को अपनी क्षमताओं का निर्माण करने और सीखने, कमाने और नेतृत्व करने की क्षमता बढ़ाने के लिए समान अवसर प्रदान किए जाएं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2024 एक अधिक समावेशी और लैंगिक-समान विश्व की दिशा में प्रगति में तेजी लाने के लिए कार्रवाई के आह्वान के रूप में कार्य करता है। अगर हम 1911 में जब इसे कई देशों में एक साथ मनाया गया था, तब से लेकर इस वर्ष तक गिनती लगाए, तो साल 2024 में यह 113 वां महिला दिवस होगा, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाएगा. यह दिन पूरे विश्व में एक साथ 08 मार्च 2024 को अपने-अपने तरीके से सेलिब्रेट किया जायेगा।

पिछले कुछ सालों के अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस थीम
साल 1996 से लगातार महिला दिवस किसी निश्चित थीम के साथ ही मनाया जाता आ रहा है, सर्वप्रथम 1996 में इसकी थीम “अतीत का जश्न और भविष्य के लिए योजना” थी. इसके बाद लगातार हर साथ एक नई थीम और नए उद्देश्य के साथ इसे कई देश एक साथ मनाते आ रहें है. पिछले बीते 10 सालों में महिला दिवस की थीम्स इस प्रकार थी –
2009 : इस वर्ष की महिला दिवस की थीम महिला व लड़कियों के खिलाफ होने वाले अत्याचारों के विरूध्द महिला व पुरुष एक साथ मिलकर प्रयत्न करें, इस मुद्दे पर विचार किया गया था।
2010 : इस वर्ष महिलाओं को पुरुषो के समान अधिकार और समान अवसर प्रदान कर उनकी तरक्की की और ध्यान केन्द्रित किया गया था।
2011 : इस वर्ष शिक्षा, प्रशिक्षण एवं विज्ञान और प्रोद्योगिकी आदि क्षेत्रों में महिलाओं को समान अधिकार देकर इन क्षेत्रों में इनकी तरक्की  का मार्ग खोला गया था।
2012 : इस वर्ष गाँव की महिलाओं को समान अवसर देकर उन्हे सशक्त बनाने का प्रयास किया गया था, साथ ही गरीबी और भुखमरी जैसी समस्या पर भी ध्यान केन्द्रित किया गया था।
2013 : इस वर्ष महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने के लिए कार्यवाही के समय को निश्चित करने की मांग की गई थी।
2014 : इस वर्ष नारी के लिए समानता और उनकी तरक्की ही इस दिन का विषय था।
2015 : इस वर्ष महिलाओं की तरक्की से समस्त मानव जाती की तरक्की को जोड़ा गया था।
2016 : इस वर्ष आने वाले आगामी 12 सालों में महिला व पुरुष का अनुपात बराबर करने का निर्णय लिया गया था।
2017 : इस वर्ष बदलती दुनिया में महिलाओं की स्थिति के साथ आगामी सालों में लिंग अनुपात को बराबर करने पर ध्यान केन्द्रित किया गया था।
2018  : इस वर्ष की थीम का उद्देश्य महिलाओं को उनके विकास के लिए प्रोत्साहित करना था।
2019 : थिंक इक्वल, बिल्ड स्मार्ट, इनोवेट फॉर चेंज।
2020 : ईच फॉर इक्वल (Each For Equal) ।
2021 : महिला नेतृत्व: कोविड-19 की दुनिया में एक समान भविष्य को प्राप्त करना।
2022 : जल्द ही घोषित किया जायेगा

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कैसे मनाया जाता है
अफगानिस्तान, चीन, कंबोडिया, नेपाल और जार्जिया जैसे कई देशों में इस दिन अवकाश घोषित किया जाता है, कुछ देशों में पूरे दिन का अवकाश ना देकर हाफ डे दिया जाता है. वहीं कुछ देशों में इस दिन बच्चे अपनी माँ को गिफ्ट देते है और यह दिन माँ को समर्पित होता है, तो कई देशों में इस दिन पुरुष अपनी पत्नी, फ़्रेंड्स, माँ बहनों आदि को उपहार स्वरूप फूल प्रदान करते है. भारत में इस दिन कई संस्थानों द्वारा नारी को सम्मान देकर प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से कई कार्यक्रम किए जाते है. भले ही हर देश में इस दिन को मनाने का तरीका अलग हो सकता है परंतु सब जगह इसका उद्देश्य एक ही है, हर जगह हर क्षेत्र में महिलाओं के लिए समानता।

हर महिला को मालूम होने चाहिए अपने ये अधिकार
भारतीय संविधान ने महिलाओं को ऐसे कई अधिकार दिए हैं, जो बराबरी की उनकी लड़ाई को आसान कर सके. यहां हम ऐसे ही कानूनी अधिकारों का जिक्र कर रहे हैं जिनकी जानकारी प्रत्येक भारतीय महिला को होनी चाहिए।
समान वेतन : समान पारिश्रमिक अधिनियम के अनुसार, महिलाओं को समान काम के लिए समान वेतन पाने का अधिकार है. भारतीय संविधान यह सुनिश्चित करता है कि लिंग के आधार पर वेतन, पारिश्रमिक या मजदूरी के मामले में कोई भी भेदभाव ना हो सके।
महिला की ही मौजूदगी में हो मेडिकल जांच : भारतीय कानून यह निर्देश देता है कि यदि किसी महिला पर किसी आपराधिक मामले का आरोप है तो उसकी मेडिकल जांच किसी अन्य महिला द्वारा या उसकी उपस्थिति में ही की जानी चाहिए. ताकि किसी भी परिस्थिति में महिला की गरिमा के अधिकार का उल्लंघन ना हो सके. यह प्रावधान महिलाओं की गोपनीयता की रक्षा करता है और कानूनी प्रक्रियाओं में सम्मानजनक व्यवहार सुनिश्चित करता है।
कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न अधिनियम : यह अधिनियम वर्क प्लेस पर महिलाओं को किसी भी प्रकार के यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का अधिकार देता है. यह अधिनियम शिकायतों के समाधान के लिए आंतरिक शिकायत समितियों की स्थापना करने की भी पैरवी करता है, जो महिलाओं के लिए एक सुरक्षित वर्क प्लेस तैयार कर सके. विशाखा गाइडलाइन्स जैसी कवायद भी कार्यस्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं।
भारतीय संविधान की धारा 498 : यह धारा महिलाओं को मौखिक, आर्थिक, भावनात्मक और यौन शोषण सहित घरेलू हिंसा से बचाती है. पीड़ित महिलाओं द्वारा इस सेक्शन में शिकायत दर्ज करवाने पर अपराधियों को गैर-जमानती कारावास का सामना करना पड़ सकता है।
यौन अपराध पीड़ितों के लिए : यौन अपराधों से पीड़ित महिलाओं की गोपनीयता और सम्मान की रक्षा के लिए, महिलाओं को जिला मजिस्ट्रेट के सामने अकेले या महिला पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में अपने बयान दर्ज करने का अधिकार है।
मुफ्त कानूनी सहायता : कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम के तहत बलात्कार पीड़ित महिलाएं मुफ्त कानूनी सहायता की हकदार हैं. यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि इस मुश्किल वक्त के दौरान पीड़ित महिलाओं को उचित और निशुल्क कानूनी सहायता प्राप्त हो सके. ताकि उन्हें न्याय मिलने में मुश्किल का सामना ना करने पड़े।
गिरफ्तारी संबंधी : असाधारण परिस्थितियों के अलावा महिलाओं को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता. यह भी तब जब जब तक प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट के आदेश के साथ ही संभव हो सकता है. कानून यह भी कहता है कि महिला आरोपी से पुलिस एक महिला कांस्टेबल और परिवार के सदस्यों या दोस्तों की उपस्थिति में ही पूछताछ कर सकती है।
आईपीसी की धारा 354डी : यह उन व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने में सक्षम बनाती है जो बार-बार व्यक्तिगत बातचीत या इलेक्ट्रॉनिक निगरानी के माध्यम से महिलाओं का पीछा करते हैं. यह प्रावधान पीछा करने के अपराध को संबोधित करता है और महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।

महिला सशक्तिकरण में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका
संयुक्त राष्ट्र के द्वारा कई कार्यक्रमों का आयोजन दुनिया भर में हर साल किया जाता है. जिसके जरिए नारी शाक्ति को अपनी पहचान बनाने के लिए प्रेरित किया जा सके. वहीं ये काफी दुख की बात है कि अभी तक हम लोगों को महिलाओं और पुरुषों को समान पहचान और अधिकार देने के लिए इतनी मेहनत करनी पड़ रही है.

भारत में महिलाओं की स्थिति 
हमारे देश में नारियों की क्या परिस्थिति है, इस बात का अंदाजा इस चीज से ही लगाया जा सकता है, कि अभी भी भारत में ऐसे कई गांव हैं. जहां की महिलाओं का जीवन घर की चार दीवारों तक ही सीमित है. इतना ही नहीं हमारे देश में काम (नौकरी) करने वाली महिलाओं की संख्या भी अन्य देशों के मुकाबले कम हैं. हमारे देश की ज्यादातर पढ़ी-लिखी महिलाएं भी इस वक्त अपने हक के लिए कुछ भी नहीं कर पा रही हैं. उनको ना चाहते हुए भी ऐसा जीवन जीना पड़ रहा है, जिसके वो विरूद्ध हैं।

भारत का महिला आरक्षण बिल 
किसी भी देश को चलाने के लिए सभी महत्वपूर्ण फैसले उसकी संसद में ही लिए जाते हैं. वहीं हमारी संसद में अगर महिला सांसदों की संख्या देखी जाए, तो वो ना के सामान ही है. हमारे देश की महिलाओं की भूमिका देश को चलाने में ज्यादा खास नहीं है. वहीं संसद में महिलाओं की इतनी कम संख्या को देखते हुए भारत की सरकार ने साल 2010 में महिला आरक्षण बिल का संसद में सबके सामने प्रस्ताव रखा. इस बिल के मुताबिक संसद की 33 % सीटों को महिलाओं के लिए आरक्षित करने के नियम का प्रस्ताव रखा गया था. लेकिन उस समय कांग्रेस सरकार केवल राज्यसभा से ही इस बिल को पास करवाने में कामयाब रही थी. लोकसभा में इस बिल को पूर्ण बहुमत न मिलने के कारण इसे पास नहीं किया जा सका था। वहीं साल 1993 में भारत सरकार ने एक संवैधानिक संशोधन पारित किया गया था.  जिसमें ग्रामीण परिषद स्तर के होने वाले चुनावों में एक तिहाई सीटे महिलाओं के लिए आरक्षित थी. जिसकी वजह से आज हर गांव में होने वाले चुनाव में महिला चुनाव लड़ती हैं।

महिला सशक्तिकरण का महत्व
आप लोगों के मन में ये सवाल जरूर आया होगा कि आखिर क्यों महिला सशक्तिकरण के मुद्दे को विश्व के कई संगठनों द्वारा इतना महत्व दिया जाता है. वहीं इन सब सवालों के जवाब आपको नीचे दिए गए हैं।
समाज का विकास : महिला सशक्तिकरण का मुख्य लाभ समाज से जुड़ा हुआ है. अगर हम लोगों को अपने देश को एक शक्तिशाली देश बनाना है, तो उसके लिए हम लोगों को समाज की महिला को भी शक्तिशाली बनाने की जरूरत है. महिलाओं के विकास का मतलब होता है कि आप एक परिवार का विकास का कार्य कर रहे हैं. अगर महिला शिक्षित होगी, तो वो अपने परिवार को भी पढ़ा-लिखा बनाने की कोशिश करेगी. जिसके चलते हमारे देश को पढ़े-लिखे नौजवान मिलेंगे. जो कि देश की तरक्की में अपनी योगदान दे सकेंगे।
घरेलू हिंसा में कमी : घरेलू हिंसा एक ऐसी चीज है, जो कि किसी भी महिला के साथ हो सकती है. ये जरूरी नहीं है कि घरेलू हिंसा केवल अनपढ़ महिलाओं के साथ ही होती है. शिक्षित महिलाएं भी इस तरह की हिंसा का शिकार होती हैं. बस फर्क इतना होता है कि जहां पढ़ी-लिखी महिलाएं इसके खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत रखती हैं. वहीं अनपढ महिलाएं ऐसी हिंसा के विरुद्ध अपनी आवाज उठाने से डरती हैं. वहीं अगर महिलाओं का विकास किया जा सके तो हमारे देश में होने वाली घरेलू हिंसा में ना केवल कमी आएगी. बल्कि महिलाएं घरेलू हिंसा करने वाले आदमी को सजा भी दिलावाने के लिए आगे आएंगी।
आत्म निर्भर बनाना : हमारे देश में लड़कियों को बचपन से ही सिखाया जाता है कि उन्हें आगे जाकर केवल घर की ही देखभाल करनी हैं. अभी भी गांव में पढ़ाई करने से ज्यादा लड़कियों को घर के काम सिखाए जाते हैं. जो ना सिर्फ लड़कियों के भविष्य के लिए गलत हैं. बल्कि देश के लिए भी नुकसानदेह है. देश में अशिक्षित लड़कियां होने का मतलब है कि देश की करीब 40% आबादी का अशिक्षित होना. अगर हम अपने देश की लड़कियों को आत्म निर्भर नहीं बननें देंगे, तो हमारे देश की महिलाएं केवल रसोई तक ही समिति रह जाएंगी।
गरीबी कम करने : महिला सशक्तिकरण का जो अगला सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य है, वो गरीबी से जुड़ा हुआ है. अक्सर देखा गया है कि इतनी महंगाई के जमाने में कभी-कभी, परिवार के पुरुष सदस्य द्वारा अर्जित धन परिवार की मांगों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं होता है. वहीं महिलाओं की अतिरिक्त आय परिवार को गरीबी के रास्ते से बाहर आने में मदद करता है. इसलिए गरीबी को कम करने के लिए भी महिलाओं का शिक्षित होने के साथ-साथ कामकाजी होना भी जरूरी है।
प्रतिभाशाली : कई ऐसी लड़कियां होती है, जिनमें कई प्रतिभा होती हैं. लेकिन सही मागर्दशन और शिक्षा ना मिल पाने के चलते वो अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल नहीं कर पाती हैं. इसलिए अगर महिलाओं का सहीं से सशक्तिकरण कर दिया जाए, तो महिला अपने हुनर की पहचान कर सकेंगी. जिससे देश को भी प्रतिभाशाली महिलाएं मिलेंगे. जो कि देश के विकास के लिए कार्य करेंगी।
समाज में समानता मिलना : महिला सशक्तिकरण करने का जो सबसे बड़ा लक्ष्य है. वो महिलाओं को पुरुष के समान इस समाज में समानता देना है. अभी भी दुनिया में ऐसे कई देश हैं, जहां पर महिला को पुरुषों की तरह अधिकार नहीं दिए गए हैं. महिलाएं अभी भी केवल गुलामों की तरह कार्य करती हैं. उनको ना अपनी बात कहने की और ना कुछ निर्णय लेनी की आजादी दी गई है. वहीं महिला सशक्तिकरण के जरिए ऐसी महिलाओं का विकास करने पर ही जोर दिया जाता है. ताकि ये महिलाएं बोलने की आजादी का लाभ उठा सकेंगी. अपनी राय खुलकर समाज के सामने रख सकें।

भारत में महिलाओं के लिए चलाई गई योजना 
भारत सरकार ने देश की महिलाओं के विकास के लिए कई सारी योजनाएं चलाई हैं. इन योजनाओं की मदद से सरकार महिलाओं की मदद कर उनका सशक्तिकरण करना चाहती हैं. वहीं इन योजना का बारे में नीचे जानकारी दी गई है.

नेशनल मिशन फॉर इम्पॉवरमेंट ऑफ वूमन 
इस मिशन को महिलाओं का सशक्तिकरण करने के लक्ष्य से भारत सरकार ने शुरू किया था. 15 अगस्त 2011 को शुरू किए गए इस मिशन को राष्ट्रीय और राज्य दोनों लेवल पर शुरू किया गया था. इस मिशन की मदद से महिलाओं को आत्म निर्भर बनाया जा रहा है।
स्वाधार गृह योजना : इस योजना के अंतर्गत 18 वर्ष के ऊपर की आयु वाली लड़कियों को रहने के लिए आवास दिए जाते हैं. ये योजना उन लड़कियों के लिए चलाई गई है, जो कि बेघर हो गई हैं. आवास के अलावा इस योजना के अंतर्गत भोजन, कपड़े, स्वास्थ्य सुविधाएं और उनकी आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा भी सुनिश्चित की जाती है।
वन स्टॉप सेंटर योजना : इस योजना की मदद से घरेलू हिंसा का सामना कर रही महिलाओं को सहायता प्रदान की जाती है. इतना ही नहीं इस हिंसा से ग्रस्त महिलाओं को चिकित्सा, कानूनी, मनोवैज्ञानिक और परामर्श सहित अन्य सहायता भी दी जाती हैं. ये योजना महिलाओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।
बेटी पढ़ाओबेटी बचाओ योजना : लड़कियों के कल्याण और उनकी पढ़ाई के प्रति लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने के लक्ष्य से बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ योजना को शुरू करा गया था. साल 2015 में इस योजना की चलाया गया था. इस योजना के जरिए लड़कियों के परिवार वालों को उन्हें शिक्षित करने के लिए प्रोत्सहित किया जाता है।
कार्य महिला छात्रावास योजना : जो महिलाएं अपने परिवार से दूर रहकर कार्य कर रही हैं, उन महिलाओं के लिए इस योजना को शुरू किया गया है. इस योजना के अंतर्गत कोई भी कामकाजी महिला को रहने की सुविधा सरकार द्वारा मुहैया कराई जाती है. महिला बिना किसी डर के सरकार द्वारा खोले गए इन छात्रावास में रहकर अपनी नौकरी जारी रख सकती हैं।
महिला हेल्पलाइन योजना : साल 2015 में शुरू की गई इस योजना को हिंसा से प्रभावित महिलाओं के लिए बनाया गया है. इस योजना की मदद से घरेलू हिंसा से प्रभावित कोई भी महिला 24 घंटे टोल-फ्री टेलीकॉम सेवा पर फोन कर मदद मांग सकती है. कोई भी महिला कभी भी 181 नंबर पर फोन कर किसी भी प्रकार की सहायता पुलिस से ले सकती है।
राजीव गांधी राष्ट्रीय आंगनवाड़ी योजना : ऑफिसों में काम करने वाली माताओं के लिए इस योजना को चलाया गया है. अक्सर कामकाजी महिलाएं अपने बच्चों को लेकर परेशान रहती हैं. इस योजना के जरिए कामकाजी महिलाएं अपने बच्चों को नर्सरी में छोड़ सकती हैं. जहां पर उनके बच्चों की देखभाल की जाएगी. वहीं शाम को अपना काम खत्म करके महिलाएं अपने बच्चों को वापस अपने साथ घर ले जा सकती हैं. देखभाल की सुविधा के अलावा इन नर्सरियों में बच्चों को बेहतर पोषण, प्रतिरक्षण सुविधाओं, सोने के लिए सुविधा और इत्यादि सुविधा प्रदान की जाती हैं।

दुनियाँ के महान लोग भी नारि शक्ति को मानते आये हैं उनका सम्मान करते आये. इतिहास गवाह जो भी देशभक्त हुए हैं वे सभी नारी का सम्मान करते आये हैं तब ही उन्हें यह सम्मान प्राप्त हुआ हैं और जिन्होंने नारियों पर कुदृष्टि रखी हैं उन्होंने कितना भी अच्छा काम क्यूँ ना किया हो उन्हें वो सम्मान नहीं मिला जो मिलना था. इस नारी शक्ति को वही नहीं समझ सकते, जो खुद मानसिक रोग से पीढित हैं। आने वाले साल में भी इस दिन को हर देश मनाएगा, परंतु इसका उद्देश्य तब ही पूरा होगा, जब महिलाओं के खिलाफ होने वाले शोषण कम होंगे, जब महिलाओं के खिलाफ होने वाले आपराधिक मामले शून्य होंगे, जब महिला पुरुष को समान दर्जा मिलेगा. काश हम वो दिन जल्द ही देख पाएंगे जब महिलाओं की लैंगिक समानता के साथ उसे हर क्षेत्र में समान दर्जा उपलब्ध होगा।

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