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Good morning : आइए जानते हैं महाशिवरात्रि की शुभ तिथि, मुहूर्त, पूजा विधि और विशेष संयोग… 

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महाशिवरात्रि के दिन आदिशिव अपने निराकार स्वरुप से एक अग्निस्तंभ ज्योर्तिलिंग के साकार स्वरुप के रुप अवतरित हुये थे। हिंदुओं का पवित्र त्यौहार महाशिवरात्री फाल्गुन की चतुर्दशी को मनाया जाता है। महाशिवरात्रि पर देशभर के सभी शिव मंदिर में भोलेनाथ के दर्शन और पूजा करने के लिए बड़ी भारी भीड़ होती है। एक दूसरी धार्मिक मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि पर भोलेनाथ पृथ्वी पर आते हैं और सभी शिवलिंग में विराजमान होते हैं। इस तरह से महाशिवरात्रि पर व्रत रखने और शिव उपासना करने से व्यक्ति के कष्ट दूर होते हैं और हर एक मनोकामना पूरी होती है। आइए जानते हैं महाशिवरात्रि की शुभ तिथि, मुहूर्त, पूजा विधि और विशेष संयोग… 
भारत में आए दिनों कोई ना कोई महत्वपूर्ण व्रत त्योहार मनाया जाता रहता है। भारत में मनाए जाने वाले इन महत्वपूर्ण हिंदू त्योहारों का अपना विशेष महत्व होता है। इसी क्रम में भारत में हर साल महाशिवरात्रि का त्यौहार भी मनाया जाता है। नाम से ही पता चल रहा है यह त्यौहार भगवान शिव को समर्पित है। कहा जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव और माता पार्वती पवित्र विवाह के बंधन में बंधे थे। जबकि महाशिवरात्रि को लेकर यह भी मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव के समस्त ज्योतिर्लिंग पृथ्वी पर प्राकट्य हुए थे।ऐसा माना जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन व्रत और विधि विधान से शुभ मुहूर्त पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से आराधना करने वाले की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दिन का अपना अलग ही विशेष महत्व है महादेव शिव, लिंग स्वरुप में इसी दिन अवतरित हुये थे। इस दिन शिव की अराधना, जप तप चारों पहर की जाती है। इस बार 8 मार्च 2024 को महाशिवरात्रि का व्रत त्यौहार मनाया जाएगा। आज के इस लेख में हम आपको महाशिवरात्रि क्या है, महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है, महाशिवरात्रि 2024 का महत्व, कथा पूजन विधि, और मुहूर्त के बारे में बताने वाले हैं।

महाशिवरात्रि और शिव का अर्थ
महाशिवरात्रि का अर्थ होता है महा शिव की रात। शिव शब्द के कई अलग-अलग अर्थ निकाले जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि शिव का अर्थ कल्याणकारी होता है। कुछ मायने में शिव शब्द का अर्थ अस्तित्वहीन भी निकाला जाता है। इसीलिए शिव को शून्य माना जाता है, वह शून्य जिससे संपूर्ण सृष्टि का उद्गम हुआ है।शिव को उस अंतर आकाश की संज्ञा दी गई है जिसमें संपूर्ण ब्रह्मांड निहित है। ब्रह्मांड के ग्रह नक्षत्र उल्कापिंड यह सब जितने बड़े दिखाई पड़ते हैं, उनसे भी बड़ा है उनके बीच का अंतर आकाश जिसे शून्य कहते हैं। इसी शून्य अर्थात शिव से सभी ग्रह, नक्षत्र और संपूर्ण सृष्टि ऊपजी।

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है?
महाशिवरात्रि का त्यौहार मनाए जाने के पीछे काफी सारी कहानियां और कथाएं छुपी हुई है। वैसे तो महाशिवरात्रि का त्यौहार इस वर्ष में 8 मार्च को मनाया जाएगा, लेकिन यह जरूरी नहीं कि हर वर्ष यह 8 मार्च को ही मनाया जाए। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार महाशिवरात्रि का त्यौहार फाल्गुनी कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस बात में लोगों में आस्था है कि पूरी सृष्टि का जन्म इसी दिन से हुआ है। हर वर्ष भारत में 12 शिवरात्रि मनाई जाती है, लेकिन उसमें से यह महाशिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव के अग्निलिंग से इस सृष्टि की उत्पत्ति हुई है। तथा इसी दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह भी हुआ था। ऐसा भी माना जाता है कि भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को अपने कंठ में धारण करते पूरे ब्रह्मांड को नष्ट होने से बचाया। और किसी के लिए भगवान शिव की आराधना करने हेतु इस दिन पूरी दुनिया में उनके भक्त उपवास करते हैं। भगवान शिव के लिए व्रत रखते हैं। भारत में महाशिवरात्रि का त्यौहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन भारत के अलावा भी बहुत से ऐसे देश हैं जहां महाशिवरात्रि का त्यौहार मनाया जाता है। महाशिवरात्रि मनाने के पीछे और भी बहुत से कारण और कथाएं हैं जिनके बारे में हम आपको विस्तार से बताएंगे।

महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व
ईशान संहिता के अनुसार यह कहा गया है कि जब सृष्टि में ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव (स्वयम्भू जन्म, अवतार) हुआ था तभी से उस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत को न करने से पाप लगता है। और यह व्रत मुख्य रूप से व्रतराज के नाम से जाना जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि महाशिवरात्रि का व्रत करने वाले व्यक्ति को यमराज का भय नहीं होता है। महाशिवरात्रि के जैसा पाप और भय मिटाने वाला कोई दूसरा व्रत अस्तित्व में नहीं है। इसका एक नक्षत्र रुपी कारण भी है, जिसका आधार यह है कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा, सूर्य के समीप होता है और इससे ज्यादा समीप यह पूरे वर्ष में कभी भी नहीं होता है। इस दिन चंद्रमा का शिव रूपी सूर्य के साथ में एक मुख्य आकर्षण होता है, और इसीलिए इस दिन को महाशिवरात्रि के तौर पर जाना जाता है।

महाशिवरात्रि और शिवरात्रि में क्या अंतर है?
शिवरात्रि हर माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाई जाती है जबकि महाशिवरात्रि फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की शिवरात्रि को शिव भगवान का महापर्व महाशिवरात्रि मनाई जाती है। इसी दिन माता पार्वति व शिव भगवान का विवाह हुआ था, इसी दिन आदिशिव अपने निराकार स्वरुप से एक अग्निस्तंभ ज्योर्तिलिंग के साकार स्वरुप के रुप अवतरित हुये थे इससे इस दिन का महत्व कई गुना बढ़ जाता है।

महाशिवरात्रि पर आधारित कथाएं
महाशिवरात्रि के लिए हमारे पास में बहुत सी ऐसी कथाएं और दंत कथाएं हैं जिनके आधार पर महाशिवरात्रि मनाई जाने का उल्लेख किया जाता है। सबसे पहली कथा है कि-
पहली कथा : महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव ने अपने कंठ में हलाहल विष को धारण किया था, और इस की पीड़ा से भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया। देवताओं के वैद्यों ने कहा कि भगवान शिव को उस पूरी रात के लिए जगना जरूरी है, इसलिए भगवान शिव ने अपने आप को एक सतर्क चिंतन में रख लिया। भगवान शिव को जगाए रखने के लिए देवताओं ने अलग-अलग नृत्य करने और संगीत बजाने भी शुरू कर दिए। ऐसा कहा जाता है कि यदि भगवान शिव हलाहल विष तो अपने कंठ में धारण नहीं करते तो उस विष से पूरा ब्रह्मांड का नाश हो सकता था। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शिव ने अपने कंठ में हलाहल विष को धारण करके पूरी सृष्टि का उद्धार किया, तथा पूरी सृष्टि को नष्ट होने से बचाया।
दूसरी कथा : एक कथा यह भी है कि इस दिन भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग स्वरूप का स्वयंभू जन्म हुआ था, यानी कि उसे पैदा करने वाला कोई भी नहीं था, और वह ज्योतिर्लिंग, भगवान शिव के निराकार रूप में अवतरित हुआ। अवतरण के समय वह ज्योतिर्लिंग एक लिंग रूप में था। उस दिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी थी इसीलिए इस महान अवसर को महाशिवरात्रि के तौर पर मनाया जाता है।

महाशिवरात्री की पूजा का समय एवं शुभ मूर्हुत 2024
महाशिवरात्रि पर इस बार वर्षों बाद कई दुर्लभ योगों का संयोग बना है। इस बार महाशिवरात्रि, सर्वार्थ सिद्धि, सिद्धि, शिव योग, श्रवण नक्षत्र का संयोग, इस दिन चंद्रमा शनि के नक्षत्र श्रवण उपरांत मंगल के धनिष्ठा नक्षत्र में गोचर करेंगे। इसके अलावा महाशिवरात्रि के दिन चतुर्दशी तिथि के साथ त्रयोदशी तिथि भी है। इसलिए शुभ मुहूर्त में पूजन करने से भक्तों को भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त हो सकती है। महाशिवरात्रि पर चार प्रहर की पूजा करने का भी विधान है। आइए जानते हैं महाशिवरात्रि पर चारों प्रहर की पूजा करने के लिए शुभ मुहूर्त।

महाशिवरात्रि चार प्रहर पूजन शुभ मुहूर्त
प्रथम प्रहर पूजन मुहूर्त : 8 मार्च को रात में 6 बजकर 25 मिनट से 9 बजकर 28 मिनट तक
द्वितीय प्रहर पूजन मुहूर्त : 8 मार्च को रात में 9 बजकर 28 मिनट से 12 बजकर 31 मिनट तक
तृतीय प्रहर पूजन मुहूर्त : रात में 12 बजकर 31 मिनट से 3 बजकर 34 मिनट तक (8-9 मार्च मध्यरात्रि)
चतुर्थ प्रहर पूजन मुहूर्त : मध्य रात्रि 3 बजकर 34 मिनट से अगले दिन सुबह 6 बजकर 37 मिनट तक।
महाशिवरात्रि पारण मुहूर्त : अगले दिन 9 मार्च को सुबह 6 बजकर 38 मिनट से 6 बजकर 17 मिनट तक।
निशीथ काल पूजन मुहूर्त : मध्यरात्रि 12 बजकर 7 मिनट से 12 बजकर 56 मिनट तक।
महाशिवरात्रि दिन की पूजा का चौघड़िया मुहूर्त
8 मार्च लाभ चौघड़िया : सुबह 8 बजकर 6 मिनट से 9 बजकर 35 मिनट तक।
8 मार्च को अमृत चौघड़िया : सुबह 9 बजकर 35 मिनट से 11 बजकर 3 मिनट तक।
8 मार्च को शुभ चौघड़िया : दोपहर 12 बजकर 32 मिनट से 2 बजे तक।
महाशिवरात्रि रात की पूजा का चौघड़िया मुहूर्त
लाभ चौघड़िया मुहूर्त : रात में 9 बजकर 29 मिनट से 11 बजकर 1 मिनट तक।
अमृत चौघड़िया मुहूर्त : मध्य रात्रि 2 बजकर 1 मिनट से 3 बजकर 33 मिनट तक।
शुभ चौघड़िया मुहूर्त : मध्यरात्रि 12 बजकर 29 मिनट से 2 बजकर 1 मिनट तक।

महाशिवरात्रि पर चार प्रहर पूजन का महत्व
ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती पृथ्वी पर भ्रमण करने के लिए आते हैं। इसलिए रात के समय में भगवान शिव और माता पार्वती की उपासना का विशेष महत्व है। इसके अलावा चार प्रहर की पूजा करने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त होता है। इसके अलावा चार प्रहर की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती है। साथ ही व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

महाशिवरात्रि पूजा विधि
महाशिवरात्रि के अवसर पर पूरे भारत में शिवलिंग को एक विशेष जलाभिषेक और दुग्ध अभिषेक से सजाया जाता है। सुबह सुबह शिव के मंदिरों में भक्तों की कतार लग जाती है। सभी लोग पारंपरिक तरीके से भगवान शिव के शिवलिंग की पूजा करते हैं। पूजा में पानी, दूध, शहद, बेल पत्ते/ बेलपत्र, सिंदूर, धूप, धन, धान, उपज, अनाज, दीपक, पान के पत्ते इन सभी का उपयोग किया जाता है। लेकिन तुलसी के पत्ते, हल्दी और चंपा तथा केतकी के फूलों का उपयोग नहीं किया जाता है।

पूजा विधि
*  पूजा विधि में सबसे पहले सुबह नहा धोकर, भोर के समय भगवान शिव की मुख्य रूप से किसी मंदिर में जाकर के पूजा की जाती है।
*  पूजा के दौरान सबसे पहले भगवान शिव को स्वच्छ जल से साफ़ किया जाता है या नहलाया जाता है।
*  बाद में गंगाजल से नहलाया जाता है।
*  इसके बाद में भगवान शिव के शिवलिंग पर गंगाजल के द्वारा बनाए गए, चंदन का लेप लगाया जाता है।
*  पीली और लाल चंदन का लेप लगाया जाता है।
*  इसके बाद में भगवान शिव को सजाने के लिए विभिन्न प्रकार के फूलों का आवरण औढाया जाता है।
*  उसके बाद में बेलपत्र, सिंदूर, दीपक, पान के पत्ते, दूध, शहद, बेर, बेल के पत्ते, और विभिन्न प्रकार के फूलों और फलों से भगवान को भोग लगाया जाता है।
*  पूजा में विभिन्न प्रकार की मिठाइयों का भी उपयोग किया जा सकता है(बिना चावलों की मिठाई)।
*  इसके बाद में भगवान शिव के यह विभिन्न प्रकार के भजनों को गाया जाता है, इस प्रकार भगवान शिव की पूजा महाशिवरात्रि पर करी जाती है।

क्या है शिवलिंग?
शिवलिंग को शिवलिंगम, या फिर शिवालिंगम, तथा पार्थिवलिंग भी कहा जाता है। यह भगवान शिव की प्रतिमाविहीन आकृति है। यह आकृति दर्शाती है कि भगवान शिव स्वयंभू है, और उनका कोई आकार नहीं है। वह एक निराकार-सकार रूप में हर जगह विद्यमान है। जिस स्थान पर भगवान शिव के शिवलिंग को खड़ा किया जाता है, उसे पीठम कहा जाता है। शिवलिंग को मुख्य रूप से अधिक गोलाकार आकार में देखा जा सकता है।

भारत में मुख्य 12 ज्योतिर्लिंग कहां पर है?
भारत में 12 जगह बड़े ज्योतिर्लिंग है उनके नाम कुछ इस प्रकार है-
*  सोमनाथ ज्योतिर्लिंग जोकि गुजरात के काठियावाड़ में है।
*  श्री शैल मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग जो कि कृष्ण नदी के किनारे स्थित है।
*  श्री महाकाल उज्जैन का महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग।
*  ओंकारेश्वर शिवलिंग जिसे ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है, जो कि मध्य प्रदेश में स्थित है।
*  नागेश्वर ज्योतिर्लिंग जो कि गुजरात में स्थित है।
*  बैजनाथ झारखंड में बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित है।
*  महाराष्ट्र के भीमाशंकर में भीमा नदी के पास में भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग स्थित है।
*  त्रिंबकेश्वर नासिक में त्रिंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है।
*  महाराष्ट्र के औरंगाबाद में घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है।
*  हिमालय के दुर्गम स्थान में केदारनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित है।
*  वाराणसी काशी विश्वनाथ में विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित है।
*  रामेश्वरम के त्रिचनापल्ली में रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग स्थित है।

”इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।”

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