ये सत्य है, बेटियां तो भाग्य वालों को ही मिलती हैं। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक जब जब बेटियों को मौका मिला है, उन्होंने अपनी वीरता और कौशल की अनूठी मिसाल कायम की है। वर्तमान में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां पर हमारी बेटियां अपने आदम्य साहस, बुद्धि, कौशल एवं कर्मठता से अपना परचम नहीं लहरा रही हैं। भारत की हर एक बेटी के लिए प्रत्येक वर्ष 24 जनवरी के दिन को राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह उत्सव देश में लड़कियों को अधिक समर्थन व नए प्रगतिशील अवसरों को प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू किया गया। इसके साथ ही भारत में आज भी बेटियों के प्रति जो असामानता की भावना व्याप्त है, उस भावना को समाप्त करने के लिए जागरूक किया जाता है।
प्राचीन समय से लड़कियों को लड़कों से कम समझा जाता रहा है. कन्या भ्रूणहत्या, बाल विवाह जैसी रुढ़िवादी प्रथायें उस समय बहुत प्रचलित हुआ करती थी, जिसके चलते शिक्षा, पोषण, कानूनी अधिकार और चिकित्सा देखभाल जैसे उनके मानव अधिकार उन्हें नहीं दिए जाते थे. लड़कियों के प्रति समाज की सोच के कारण ही बालविवाह प्रथा, सती प्रथा, दहेज़ प्रथा और कन्या भ्रूण हत्या जैसी रूढ़िवादी प्रथाएं काफी प्रचलित हो गई| इसके साथ ही लड़कियों को शिक्षा, पोषण, कानूनी अधिकार और चिकित्सा जैसे अधिकारों से वंचित रखा जाने लगा| किन्तु अब आधुनिक समय में उन्हें उनके अधिकार देने एवं उसके प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए कई प्रयास किये जा रहे हैं. उसी के अनुसार कुछ साल पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बालिका दिवस मनाने का फैसला लिया गया. वर्ष 2008 से ही भारत में हर साल 24 जनवरी को आयरन लेडी कही जाने वाली श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा प्रथम महिला प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लिए जाने के दिन को रेखांकित करते हुए राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है, इसका उद्देश्य बालिकाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करना है। इस साल 2024 में 24 जनवरी को मंगलवार के दिन हम 16वां नेशनल गर्ल चाइल्ड डे मनाने जा रहे हैं। इस दिन को मनाने की शुरुआत किस लिए एवं किस तरह से की गई एवं इससे जुड़ी सभी तरह की जानकारी हम आपके सामने इस लेख के माध्यम से प्रदर्शित करने जा रहे हैं।
राष्ट्रीय बालिका बारे में जानकारी
नाम : राष्ट्रीय बालिका दिवस (National Day of Girl Child)
शुरूआत : वर्ष 2008 में
तिथि : 24 जनवरी (वार्षिक)
उद्देश्य : लड़कियों को उनके अधिकारों के आधार पर लैंगिक असमानता के बारे में जागरूक करना।
सम्बंधित व्यक्ति : श्रीमती इंदिरा गाँधी
नेशनल गर्ल चाइल्ड डे कब और क्यों मनाया जाता है?
आज के समय में भी कन्या भ्रूण हत्या, लैंगिक असमानता से लेकर यौन शोषण तक बालिकाओं के प्रति मुद्दों की कोई कमी नहीं है| भारत में ही नहीं विश्व भर में लैंगिक भेदभाव एक बड़ी समस्या है, जिसका सामना लड़कियों या महिलाओं को जीवनभर करना पड़ता है| इसलिए भारत सरकार द्वारा लड़कियों की स्थिति में सुधार के लिए कई कदम उठाए गए हैं| राष्ट्रीय बालिका दिवस भी ऐसा ही एक प्रयास है जो बालिकाओं की प्रगति के लिए वर्ष में किये गए और किये जाने वाले कार्यों की समीक्षा करने का अवसर प्रदान करता है| समाज में लड़कियों के साथ होने वाले भेदभाव को देखते हुए भारत सरकार ने बेटियों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करना और लैंगिक असमानता को दूर कर समाज में समानता लाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने की शुरुआत की थी। इस दिन नारी शक्ति के तौर पर श्रीमती इंदिरा गांधी को याद किया जाता है क्योंकि उन्होंने इसी दिन वर्ष 1966 में भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री के तौर पर अपना कार्यभार संभाला था। हमारे देश में आज भी लड़कियों को समाज में असमानता का सामना करना पड़ता है ऐसे में देश भर में कन्याओं को समर्थन और अवसर प्रदान करना तथा उनके अधिकारों, उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण के बारे में जागरूकता बढ़ाना भी इस दिवस का मुख्य लक्ष्य है।
राष्ट्रीय बालिका दिवस का इतिहास? कैसे हुई इसकी शुरूआत
24 जनवरी को बालिका दिवस मनाने की शुरुआत भारत के महिला एवं विकास मंत्रालय ने वर्ष 2008 में की थी जिसका उद्देश्य बालिकाओं को सशक्त बनाना और उनके अधिकारों के प्रति उन्हें जागरूक करना था। इसके लिए 24 जनवरी की तारीख इसलिए भी चुनी गई क्योंकि वर्ष 1966 में इसी दिन नारी शक्ति की प्रतीक और आयरन लेडी के तौर पर जानी जाने वाली श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने देश की पहली महिला प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली थी। समाज में बालिकाओं के प्रति हो रहे अत्याचारों और फैली कुरीतियों को खत्म करने के लिए कई महान लोगो ने अपना पूरा जीवन खपा दिया। लेकिन अब भी समाज में बालिकाओं को हीन भावना से देखा जाता है और दुनिया भर में बालिकाओं के प्रति अपराध और शोषण भी खासा कम नहीं हुआ है ऐसे में बालिका दिवस मनाना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने का उद्देश्य
राष्ट्रीय बालिका दिवस की क्यूं आवश्यकता है।
समाज में लोगों की चेतना को बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय कार्य के रूप में “राष्ट्रीय बालिका दिवस” प्रतिवर्ष मनाया जाता है| इस दिन का उद्देश्य भारतीय समाज की बालिका शिशुओं के द्वारा सामना की जा रही असामनता को हटाना, यह सुनिश्चित करना कि भारतीय समाज में हर बालिका शिशु को उचित सम्मान और महत्त्व दिया जा रहा है| राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाना यह सुनिश्चित करता है कि देश की हर बालिका शिशु को उसके सभी मानव अधिकार मिलें| विभिन सामाजिक अंधविश्वासों एवं सामाजिक भ्रांतियों के कारण लम्बे समय से बालिका शिशु के जन्म को समाज में अभिशाप माना जाता रहा है। इसका परिणाम यह है की कन्या शिशु को जन्म से पूर्व ही कोख में मार दिया जाता है। वही कई बालिकाओं को जन्म के बाद लड़को के समान अधिकार प्राप्त नहीं होते एवं लैंगिक भेदभाव के कारण उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार एवं अन्य अवसरों हेतु बराबरी का अधिकार नहीं दिया जाता है। यह दिन भारत में बाल लिंगानुपात के खिलाफ भी कार्य करता है| इस प्रकार राष्ट्रीय बालिका दिवस भारत में लोगों के बीच लिंग समानता को प्रचारित करता है और बालिकाओं के स्वास्थ्य, सम्मान, शिक्षा, पोषण आदि से जुड़े मुद्दों के बारे में चर्चा को महत्व देता है| ऐसे में बालिकाओं को अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में विभिन समस्याओ से जूझना पड़ता है।समाज में बालिकाओं के प्रति व्याप्त असमानता को दूर करने एवं सभी क्षेत्र में बालिकाओ को समानता का दर्जा देने के लिए राष्ट्रीय बालिका दिवस (Rashtriya Balika Diwas) मनाया जाता है। इस दिवस के माध्यम से समाज को बालिका अधिकारों के बारे में जागरूक किया जाता है।
राष्ट्रीय बालिका दिवस 2024 की थीम
हर साल नेशनल गर्ल चाइल्ड डे एक खास थीम के साथ मनाया जाता है। भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय बालिका दिवस 2024 के लिए किसी थीम की घोषणा नहीं की है । पहले, नारे थे “डिजिटल पीढ़ी, हमारी पीढ़ी, हमारा समय अब है-हमारे अधिकार, हमारा भविष्य।” साल 2022 में शिक्षा मंत्रालय द्वारा इसे ‘हमारी बेटी हमारी शान‘ थीम के साथ मनाया गया था। इससे पहले वर्ष 2021 में इसे “डिजिटल पीढ़ी हमारी पीढ़ी” विषय के साथ मनाया गया था। 2020 का कार्यक्रम ‘मेरी आवाज हमारा समान भविष्य‘ विषय पर आधारित था और 2019 में इसे “उज्ज्वल कल के लिए लड़कियों का सशक्तिकरण” थीम के तहत मनाया गया।
कैसे मनाया जाता है बालिकाओं को समर्पित यह दिवस?
देश में बालिकाओं की स्थिति को प्रबल बनाने के लिए, विभिन्न स्थानों पर राष्ट्रीय बालिका दिवस कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। भारत सरकार द्वारा बालिकाओं के प्रति लोगों की चेतना बढ़ाने हेतु नई योजनाओं को लागू किया जाता है। राष्ट्रीय बालिका दिवस के दिन, समाचार पत्रों, टीवी चैनल, पत्रिकाओं आदि में राष्ट्रीय बालिका दिवस के विषय में कई महत्वपूर्ण विज्ञापन शुरू किए जाते हैं। बालिकाओं के प्रति होने वाली सामाजिक बुराइयों के खिलाफ विरोध के विषय उठाते हैं। इसके साथ ही विद्यालयों व महाविद्यालयों में, राष्ट्रीय बालिका दिवस के दिन विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम होते हैं। राष्ट्रीय बालिका दिवस की कई थीमों पर नृत्य, गायन व नाटक किए जाते हैं। गर्ल चाइल्ड डे के मौके पर विभिन्न कार्यक्रमों जैसे बेटी बचाओ, बाल लिंगानुपात और इनके स्वास्थ्य पर जोर देते हुए कई जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाते हैं। इसके साथ ही देश भर की सरकारें बालिकाओं की सुरक्षा और उनके लिए बेहतर वातावरण तैयार करने को लेकर नीतियां बनाने पर विचार विमर्श करती हैं। साल 2022 में संस्कृति मंत्रालय ने आजादी के अमृत महोत्सव के तहत इस मौके पर रंगोली उत्सव ‘उमंग’ का आयोजन किया था। तो वहीं महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा यूनिसेफ के साथ मिलकर ‘कन्या महोत्सव‘ का भी आयोजन किया गया था।
अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस कब होता है?
वैश्विक स्तर पर प्रत्येक वर्ष 11 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस (International Day of Girl Child) मनाया जाता है। इसे मनाए जाने शुरूआत वर्ष 2011 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने की थी जिसका मकसद दुनियाभर में लड़कियों को समान अधिकार देना और लैंगिक असमानता को खत्म करना है।
भारत में बालिका शिशु के अधिकार
* गर्भावस्था में भ्रूण का लिंग पता करने को सरकार ने गैर कानूनी करार दिया है। ऐसा करने पर उसमें लिप्त सभी के लिए सजा का प्रावधान है।
* देश में बाल विवाह निषेध है।
* कुपोषण, अशिक्षा, गरीबी और समाज में शिशु मृत्यु दर से लड़ने के लिए सभी गर्भवती महिलाओं की प्रसवपूर्व देखरेख जरूरी है।
* बालिका शिशु को बचाने के लिए सरकार द्वारा ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना की शुरुआत की गई है।
* मुफ्त और आवश्यक प्राथमिक शिक्षा द्वारा भारत में बालिका शिशु शिक्षा की स्थिति में सुधार हुआ है।
* स्कूली बच्चों को यूनिफॉर्म, दोपहर का खाना, शैक्षणिक वस्तु दी जाती है तथा एससी-एसटी जाति की लड़कियों के परिवारों की धन वापसी भी होती है।
* प्राथमिक स्कूलों में जाने और छोटी बच्चियों का ध्यान देने के लिए बालवाड़ी-कम-पालना घर को लागू कर दिया गया है।
* पिछड़े इलाकों की लड़कियों की आसानी के लिए मुक्त शिक्षा व्यवस्था का प्रावधान किया गया है।
* घोषित किया गया है कि बालिका शिशु के मौके बढ़ाने के लिए लड़कियों के साथ बराबरी का व्यवहार और मौके दिए जाने चाहिए।
* ग्रामीण इलाकों की लड़कियों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए मुख्य नीति के रूप में सरकार द्वारा स्वयं सहायता समूह को आरंभ किया गया है।
महिलाओं / बच्चों के लिए अधिकार
बच्चों के अधिकार
देश में बाल अधिकारों के लिए सख्त कानून बने हुए हैं, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की स्थापना 5 मार्च 2007 को हुई थी। इसकी स्थापना राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम 2005 के तहत बच्चों को दिए गए अधिकारों जैसे समानता, 6 से 14 साल की उम्र तक के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा, बाल मज़दूरी पर रोक आदि की निगरानी के लिए हुई थी।
बालिका कल्याण के लिए सरकार द्वारा उठाये गये कदम कौन से है?
बीते वर्षों में भारत सरकार द्वारा लड़कियों के हालात को सुधारने के लिये अनेक कदम उठाये गए है, जिनमें से कुछ मुख्य अभियान और योजनाएं इस प्रकार हैं:
* सुकन्या समृद्धि योजना
* बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
* धनलक्ष्मी योजना
* लाडली योजना
* सीबीएसई उड़ान योजना
* बालिका समृद्धि योजना
* लड़कियों के लिये मुफ्त या राजसहायता प्राप्त शिक्षा
* माध्यमिक शिक्षा के लिए लड़कियों के प्रोत्साहन की राष्ट्रीय योजना
क्या है शिक्षा का मौलिक अधिकार
भारत के प्रत्येक नागरिक को प्राथमिक शिक्षा पाने का अधिकार है। इस संबंध में प्रारंभिक (प्राथमिक व मध्य स्तर) पर शिक्षा नि:शुल्क हो, प्रारंभिक शिक्षा अनिवार्य हो तथा तकनीकी व व्यावसायिक शिक्षा को सर्वसुलभ बनाया जाए एवं उच्च शिक्षा सभी की पहुँच के भीतर हो” कुछ ऐसी बुनियादी सिद्धान्त हैं जो हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं। शिक्षा का उपयोग मानव व्यक्तित्व के संपूर्ण विकास, मानवीय अधिकारों और बुनियादी स्वतंत्रता के लिए किया जाना चाहिए। माता-पिता और अभिभावकों को यह पूर्वाधिकार हो कि वे अपने बच्चों को किस तरह की शिक्षा देना चाहते हैं।
यूनिसेफ और बालिका
यूनिसेफ बच्चों, किशोरियों और गर्भवती स्त्रियों के लिए कार्य करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था है। भारत में किशोरियों की स्थिति को मजबूत करने और उनको आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार की किलकारी योजना में यूनिसेफ का भी सहयोग रहा। इस योजना के तहत कई किशोरियों को अपने सपने पूरे करने और करियर बनाने का मौका मिला। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए भी यूनिसेफ कार्य कर रहा, साथ ही बाल विवाह जैसी कुरीति को खत्म करने की दिशा में जागरूकता कार्यक्रम चला रहा है।
यूनिसेफ के बालिकाओं के लिए कार्यक्रम
रेड डॉट चैलेंज : यूनिसेफ, किशोर लड़कियों, महिलाओं, भागीदारों और अधिवक्ताओं के साथ, एक ऐसी दुनिया की फिर से कल्पना करता है जहां प्राकृतिक मासिक धर्म के कारण कोई लड़की या महिला पीछे नहीं रहती है, और जहां अवधि गरीबी और कलंक इतिहास है।
बाल विवाह : किशोर और किशोरियों की उम्र से पहले शादी करने से उनके भविष्य पर संकट आ सकता है। यूनिसेफ भारत में बाल विवाह को खत्म करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम चला रहा है और राज्य सरकार व सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं के साथ मिलकर कार्य कर रहा है।
किलकारी : बिहार सरकारी किलकारी योजना को वित्तीय सहायता देती है। इस योजना के अंतर्गत किशोरियों को आत्मनिर्भर बनाना है। यूनिसेफ किशोरियों को ट्रेनिंग देता है और भविष्य के लिए तैयार करता है। किलकारी योजना और सरकार के साथ मिलकर बेटियों के उत्थान के लिए कार्य कर रहा है।
अगर आपकी बच्ची अभी छोटी है तो, उसका कॉन्फिडेंस बढ़ाने के लिए, हम बता रहें हैं कुछ टिप्स
अगर हम चाहते हैं कि लड़कियां आगे बढ़ें, तो इसकी शुरुआत हमें घर से करनी होगी। इसलिए, इस इंटरनेशनल डे ऑफ गर्ल चाइल्ड के उपलक्ष्य पर हम बता रहें कुछ टिप्स जो उन्हें कॉन्फिडेंट बनने में मदद करेंगी।
उन्हें अपनी बॉडी से प्यार करना सिखाएं : मोम्स का अपनी बेटियों पर बहुत असर पड़ता है। वे हर चीज़ में सिर्फ आपको ही रोल मॉडेल की तरह देखती हैं। इसलिए, अपनी बेटियों को बताएं कि वे कितनी सुंदर हैं और उन्हें खुद से प्यार करना सिखाएं। आपकी कही हुई यह सारी बातें उन्हें अपने आने वाले जीवन में अपनी बॉडी के प्रति कॉन्फिडेंट बनाएगी। बस अपनी बेटी को यह महसूस कराएं कि कुछ भी हो आप उसके साथ हैं।
अपनी बेटी को टेक्नोलॉजी सिखाएं : उसके साथ टीवी देखें और जो आप देखते हैं उसके बारे में बात करें। उन्हें बताएं कि सोशल मीडिया क्यों अच्छा है और क्यों नहीं। यह उन्हें आगे चलकर किसी तरह के साइबर क्राइम से बचाएगा।
उसे पीपल प्लीजर न बनाएं : लड़कियां लोगों कि खुशी के लिए क्या क्या नहीं करती हैं। कभी उनके हिसाब से कपड़े पहनती हैं तो कभी खुलकर विचार व्यक्त नहीं कर पाती हैं। इसलिए, अपनी बच्ची को छोटी उम्र से ही खुद निर्णय लेना सिखाएं। उनसे पूछें कि ‘तुम क्या चाहती हो?’ उसे चुनाव करने दें और फिर उस पसंद का सम्मान करें।
हर कदम पर उसका साथ दें : माता-पिता का साथ बच्चों के लिए सबकुछ होता है, और एक लड़की के लिए यह और भी महत्वपूर्ण है। वह जो भी करे उसका साथ दें, उसे छोटी – छोटी गलतियां करने दें। बस अपनी बेटी को यह महसूस कराएं कि कुछ भी हो आप उसके साथ हैं।
बाल अधिकारों को चार भागों में बांटा जा सकता है :
जीवन जीने का अधिकार :- पहला हक़ है जीने का, अच्छा खाने पीने का, लड्का हो या लडकी हो, सेहत सबकी अच्छी हो।
संरक्षण का अधिकार :- फिर हक़ है संरक्षण का, शोषण से है रक्षण का श्रम, व्यापार या बाल विवाह से नहीं करें बचपन तबाह।
सहभागिता का अधिकार :- तीसरे हक़ की बात करें, सहभागिता से उसे कहें, मुद्दे हों उनसे जुडे तो, बच्चों की भी बात सुनें।
विकास का अधिकार :- चौथा हक़ विकास का, जीवन मे प्रकास का, शिक्षा हो गुण्वत्तायुक्त, मनोरंजक पर डर से मुक्त।
महिलाओं के अधिकार
1) स्वतंत्रता और समानता का अधिकार
अनुच्छेद-19 में महिलाओं को यह अधिकार दिया गया है कि वह देश के किसी भी हिस्से में नागरिक की हैसियत से स्वतन्त्रता के साथ आ-जा सकती है, रह सकती है। व्यवसाय का चुनाव भी स्वतन्त्र रूप से कर सकती है। महिला होने के कारण किसी भी कार्य के लिए उनको मना करना उनके मौलिक अधिकार का हनन होगा और ऐसा होने पर वे कानून की मदद ले सकती है।
2) नारी की गरिमा का अधिकार
अनुच्छेद-23 नारी की गरिमा की रक्षा करते हुए उनको शोषण मुक्त जीवन जीने का अधिकार देता है। महिलाओं की खरीद-बिक्री , वेश्यावृत्ति के धंधे में जबरदस्ती लाना , भीख मांगने पर मजबूर करना आदि दण्डनीय अपराध है। ऐसा कराने वालों के लिए भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत सजा का प्रावधान है। संसद ने अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम,1956 पारित किया है। भारतीय दण्ड संहिता की धारा-361, 363, 366, 367, 370, 372, 373 के अनुसार ऐसे अपराधी को सात साल से लेकर 10 साल तक की कैद और जुर्माने की सजा भुगतनी पड़ सकती है। अनुच्छेद-24 के अनुसार 14 साल से कम उम्र के लड़के या लड़कियों से काम करवाना बाल-अपराध है।
3) घरेलू हिंसा का कानून
घरेलू हिंसा अधिनियम , 2005 जिसके तहत वे सभी महिलाये जिनके साथ किसी भी तरह घरेलु हिंसा की जाती है, उनको प्रताड़ित किया जाता है , वे सभी पुलिस थाने जाकर F.I.R दर्ज करा सकती है , तथा पुलिसकर्मी बिना समय गवाएँ प्रतिक्रिया करेंगे |
4) दहेज़ निवारक कानून
दहेज़ लेना ही नहीं देना भी अपराध हैं । अगर वधु पक्ष के लोग दहेज़ लेनी के आरोप मे वर पक्ष को कानून सजा दिलवा सकते हैं तो वर पक्ष भी इस कानून के ही तहत वधु पक्ष को दहेज़ देने के जुर्म मे सजा करवा सकता हैं । 1961 से लागू इस कानून के तहत बधू को दहेज़ के नाम पर प्रताड़ित करना भी संगीन जुर्म है |
5) नौकरी / स्वव्यवसाय करने का अधिकार
संविधान के अनुच्छेद 16 में स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि हर वयस्क लड़की व हर महिला को कामकाज के बदले वेतन प्राप्त करने का अधिकार पुरुषों के बराबर है। केवल महिला होने के नाते रोजगार से वंचित करना, किसी नौकरी के लिए अयोग्य घोषित करना लैंगिग भेदभाव माना जाएगा।
6) प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार
अनुच्छेद-21 एवं 22 दैहिक स्वाधीनता का अधिकार प्रदान करता है। हर व्यक्ति को इज्जत के साथ जीने का मौलिक अधिकार संविधान द्वारा प्रदान किया गया है। अपनी देह व प्राण की सुरक्षा करना हरेक का मौलिक अधिकार है।
7) राजनीतिक अधिकार
प्रत्येक महिला व वयस्क लड़की को चुनाव की प्रक्रिया में स्वतन्त्र रूप से भागीदारी करने और स्व विवेक के आधार पर वोट देने का अधिकार प्राप्त है। कोई भी संविधान सम्मत योगता रखने पर किसी भी तरह के चुनाव में उम्मीदवारी कर सकती है |
संपत्ति के अधिकार
1) हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून-2005
हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून-2005 के तहत सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया है कि पिता के उत्तराधिकार को बेटे और बेटी में समान रूप से बांटा जाए. यह व्यवस्था सितंबर 2005 के बाद प्रॉपर्टी के सभी तरह के बंटवारों में लागू होगी. बेटियों को बराबरी का दर्जा देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि उत्तराधिकार के साथ-साथ बेटियों को अपने पिता के उत्तरदायित्वों को भी निभाना पड़ेगा. इससे आशय है कि अगर पिता पर कोई कर्ज है तो इसे बेटा और बेटी दोनो मिलकर चुकाएंगे. उल्लेखनीय है कि हिंदू उत्तराधिकार [संशोधन] कानून, 2005 में बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में सहोदर भाइयों के बराबर अधिकार है. इस संशोधन के पहले बेटियों को यह अधिकार नहीं था। सर्वोच्च न्यायालय का यह आदेश परिवार और समाज में बेटियों की स्थिति को पहले से बेहतर करने में सहायक हो सकता है. युवती चाहे विवाहित हो या अविवाहित दोनों ही हालातों में संपत्ति का बराबर बंटवारा लाभदायक होगा. अकसर देखा जाता है कि पिता के निधन के पश्चात भाई अपनी बहनों के साथ बुरा व्यवहार करने लगते हैं. उन्हें जीवन यापन करने के लिए खर्च देना बंद कर देते हैं. ऐसे में उस स्त्री का अपना धन उसके काम आएगा. इसके अलावा विवाह के पश्चात भी अगर किसी महिला को आर्थिक तंगी से जूझना पड़ता है तो वह अपने भाई से अपना हक मांग सकती है|
2) सह स्वामित्व विधेयक (महाराष्ट्र)
इस विधेयक के तहत पति की अचल संपत्ति में पत्नी स्वत: आधे की भागीदार बन जाएगी। उदाहरण के लिए पति एक फ्लैट खरीदता है, तो पत्नी उस फ्लैट में 50 प्रतिशत की हिस्सेदार होगी। फ्लैट के कागजात पर पत्नी का नाम दर्ज करना अनिवार्य होगा।
वैसे तो कानूनों के निर्माण से ही नारी की सुरक्षा सम्भव नही हैं। एक सम्पूर्ण सुरक्षित वातावरण के निर्माण हेतु हमें अपने घर से ही शुरुआत करनी पड़ेगी एवम हमारे शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करना पड़ेगा। अगर हम चाहते हैं कि लड़कियां आगे बढ़ें, तो इसकी शुरुआत हमें घर से करनी होगी। इसलिए, उन्हें कॉन्फिडेंट बनाएं, खुद से प्यार करना सिखाएं। साथ ही, उनकी राय को तवज्जों दें और उन्हें अपना करीयर खुद चुनने का मौका दें। न्याय की प्रक्रिया को तीव्र करते हुए यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि बालिकाओं के अधिकार व महिलाओं के हितों की सुरक्षा हेतु अविलम्ब कार्यवाही प्रत्येक स्तर पर अविलम्ब हो। राष्ट्रीय बालिका दिवस की शुभकामनायें……
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