विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, लगभग 100 में से 1 बच्चे को ऑटिज़्म है। बचपन में ही बच्चों में ऑटिज्म के लक्षणों का पता लग जाता है। ऑटिज़्म, या ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी), एक जटिल न्यूरोडेवलपमेंटल स्थिति है। ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्तियों को सामाजिक संपर्क, संचार व्यवहार में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ऑटिज्म के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 2 अप्रैल को दुनिया भर में “विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस” मनाया जाता है। आइए जानते हैं ऑटिज्म क्या है, तिथि, इतिहास, और महत्व के बारे में विस्तार से।
दुनियाभर में लोगों को ऑटिज्म के प्रति जागरूक करने के लिए हर साल 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को इस मानसिक बीमारी के प्रति जागरूक करना है। ऑटिज्म से पीड़ित लोग दूसरों पर बहुत निर्भर होते हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा के अनुसार, हर साल विश्व ऑटिज्म जागरूक दिवस को मनाने का उद्देश्य ऑटिस्टिक लोगों के जीवन में किस तरह से सुधार लाया जा सकता है, इस पर जोर डालना है। ताकि ऑटिस्टिक लोग भी समाज का अहम हिस्सा बन सकें और आम लोगों की तरह ही अपनी जिंदगी को जी सके। विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस के मौके पर जानते हैं इसका इतिहास, ऑटिज्म क्या है (What is Autism), ऑटिज्म का लक्षण क्या हैं, इसके बारे में बताने जा रहे हैं।
क्या है ऑटिज्म?
ऑटिज्म (autism meaning in Hindi) एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति है। इसको आसान भाषा में कहें तो इस बीमारी से जुड़े व्यक्ति का दिमागी विकास अन्य की तुलना में कम होता है। ऑटिज्म एक स्पेक्ट्रम विकार है, जिसका अर्थ है कि ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्ति अपनी क्षमताओं, अपनी शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों और चुनौतियों में व्यापक रूप से भिन्न हो सकते हैं। इसमें व्यक्ति के व्यवहार, सोचने-समझने की क्षमता दूसरों से अलग होती है। ऑटिज्म की बीमारी कम उम्र में ही देखने को मिल जाती है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार ऑटिज्म मुख्य रूप से 3 प्रकार का होता है। अस्पेर्गेर सिंड्रोम, परवेसिव डेवलपमेंट और क्लॉसिक ऑट। ऑटिज्म से पीड़ित कुछ व्यक्तियों में गणित या संगीत जैसे कुछ क्षेत्रों में असाधारण क्षमताएं हो सकती हैं, जबकि अन्य को दैनिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण समर्थन की आवश्यकता हो सकती है।
विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?
हर साल 2 अप्रैल को मनाए जाने वाले विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस (World Autism Awareness Day) की स्थापना 2007 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) के बारे में जागरूकता बढ़ाने और ऑटिज़्म वाले व्यक्तियों की स्वीकृति और समावेशन को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। संकल्प, जिसे “62/139” के नाम से जाना जाता है, ऑटिज्म से पीड़ित लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने की आवश्यकता पर जोर देता है ताकि वे पूर्ण और सार्थक जीवन जी सकें।
ऑटिज्म के लक्षण
मायो क्लिनिक की रिपोर्ट के मुताबिक, छोटे बच्चों में ऑटिज्म के लक्षण जन्म के 12 से 18 सप्ताह के बाद नजर आते हैं। कुछ मामलों में ऑटिज्म ठीक हो जाता है, तो वहीं, कुछ में यह बीमारी पूरे जीवनकाल तक रह सकती है। आइए जानते हैं इसके लक्षण।
* बच्चों को देरी से बोलना शुरू करना
* एक ही शब्द को बार-बार रिपीट करना
* किसी के बोलने या कुछ कहने पर जवाब नहीं देना
* बच्चे का ज्यादा समय अकेले ही बिताना
* किसी से आंखें मिलाकर बात न करना
* एक ही चीज को बार-बार करना
* किसी भी एक काम या सामान के साथ पूरी तरह बिजी रहना
* सामने वाले व्यक्ति की भावना न समझना
* सवालों का जवाब देने में कठिनाई महसूस करना
ऑटिज्म के कारण
यह बीमारी बच्चों में अनुवांशिक कारणों से हो सकती है। कई बार लेट प्रेग्नेंसी के मामलों में भी बच्चे को ऑटिज्म जैसी बीमारी हो सकती है। वहीं, जो बच्चे समय से पहले जन्म लेते हैं उन्हें भी ऑटिज्म हो सकता है। जो बच्चे लो बर्थ वेट के साथ जन्म लेते हैं उनमें भी ये समस्या आ सकती है।
भारत और विश्व भर में ऑटिज्म की स्थिति क्या है?
भारत में भी ऑटिज्म का प्रचलन बढ़ रहा है। इंडियन जर्नल ऑफ पीडियाट्रिक्स में प्रकाशित 2021 के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में ऑटिज्म की अनुमानित व्यापकता 68 बच्चों में से लगभग 1 है। लगभग 3:1 के पुरुष-महिला अनुपात वाली लड़कियों की तुलना में लड़के आमतौर पर ऑटिज्म से अधिक प्रभावित होते हैं। दुनिया भर में ऑटिज्म के मामले बढ़ रहे हैं और सीडीसी के अनुसार पहले से कहीं अधिक बच्चों में ऑटिज्म का निदान हो रहा है और उन्हें थेरेपी और उपचार मिल रहा है। हालाँकि यह आंशिक रूप से इस स्थिति के बारे में बढ़ती जागरूकता के कारण हो सकता है, अधिक ऑटिज़्म के मामलों को वायु प्रदूषण, जन्म के समय कम वजन और तनाव जैसे कारकों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस का इतिहास
संयुक्त राष्ट्र अपनी स्थापना के साथ ही विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों और कल्याण को सुविधाजनक बनाने के लिए काम कर रहा है। संस्थान द्वारा ऑटिस्टिक लोगों को सुविधाजनक जीवन देने के लिए 1 नवंबर 2007 को एक प्रस्ताव पारित किया गया था। इस प्रस्ताव में कहा गया था कि ऑटिस्टिक लोगों को भेदभाव और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिन्हें अक्सर दुनिया द्वारा मान्यता नहीं दी जाती है। संस्थान का कहना था कि ऑटिस्टिक लोगों को समाज से जोड़ने के लिए सबसे पहले इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करना जरूरी है। संयुक्त राष्ट्र महासभा के इस प्रस्ताव 18 दिसंबर 2007 को इसे स्वीकार कर लिया गया। तब से हर साल 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस (World Autism Awareness Day 2024) मनाया जाता है।
विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस का महत्व
विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस (World Autism Awareness Day/WAAD) जनता को ऑटिज्म के बारे में शिक्षित करने, मिथकों और गलतफहमियों को दूर करने के उद्देश्य से विश्व भर में 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह एक अधिक समावेशी समाज को बढ़ावा देने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है। विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस,ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्तियों की विविध शक्तियों और प्रतिभाओं को उजागर करता है और तंत्रिका विविधता की समझ और स्वीकृति को बढ़ावा देता है। इसके अतिरिक्त, यह प्रारंभिक हस्तक्षेप, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच और ऑटिज्म से प्रभावित व्यक्तियों और परिवारों के लिए सहायता के महत्व को रेखांकित करता है।
विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस का उद्देश्य
विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस का एक प्राथमिक उद्देश्य दुनिया भर में व्यक्तियों, परिवारों और समुदायों पर इसके प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। इस दौरान शैक्षिक अभियानों, सेमिनारों, कार्यशालाओं और सोशल मीडिया आउटरीच जैसी विभिन्न पहलों के माध्यम से, संगठन और अधिवक्ता ऑटिज़्म के बारे में सटीक जानकारी प्रसारित करने और स्वीकृति और समझ को बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं।विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस समुदायों को इसके विविधता अपनाने और संतुलित एवं समावेशित वातावरण बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है। इस ऐसा वातावरण, जहां ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्ति सुरक्षित महसूस कर सकें। ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्तियों के लिए समाज की स्वीकार्यता बेहद महत्वपूर्ण है और इस समझ को बढ़ावा देकर, सुलभ शिक्षा, चिकित्सा और रोजगार के अवसरों का समर्थन दिया जा सकता है। विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस का उद्देश्य ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्तियों को उनकी पूर्ण शरीरिक एवं मानसिक क्षमता को ध्यान में रखते हुए उन्हें समाज में पूरी तरह से घुलमिल जाने के लिए सशक्त बनाना है।
विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस 2024 की थीम|
इस वर्ष विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस का विषय ‘एम्पावरिंग ऑटिस्टिक वॉयस’ है, जिसका उद्देश्य इस स्थिति वाले व्यक्तियों को अधिक समर्थन और शक्ति प्रदान करना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे एक सार्थक जीवन जी सकें और यहां तक कि सफल करियर भी बना सकें। इस स्थिति वाले लोगों का समर्थन करने और उन्हें स्वीकार करने के संकल्प को पुनर्जीवित करने के लिए हर साल थीम तय की जाती है।
पीड़ित व्यक्तियों के अधिकारों के लिए आवाज उठाना
विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस, ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्तियों के अधिकारों और जरूरतों की वकालत करने के लिए एक मंच के रूप में भी कार्य करता है। इस दिन उन नीतियों और कानून के महत्व पर ध्यान दिया जाता है जो ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करते हैं और आवश्यक सेवाओं और सहायता प्रणालियों तक उनकी पहुंच सुनिश्चित करते हैं। अधिवक्ता इस दिन का उपयोग सरकारों और नीति निर्माताओं से ऑटिज्म जागरूकता और अपने एजेंडे में शामिल करने को प्राथमिकता देने के लिए करते हैं।
ऑटिज्म का इलाज क्या है?
ऑटिज्म जैसी बीमारी का कोई भी क्लीनिकल ट्रीटमेंट नहीं है। इस बीमारी को एंटीसाइकोटिक या एंटी-एंग्जायटी दवाएं, थेरेपी के जरिए ठीक किया जा सकता है। हेल्थ एक्सपर्ट का कहना है कि एजुकेशनल प्रोग्राम और बिहेवियरल थैरेपी की मदद ली जा सकती है। ऑटिज्म के हर मामले में एक अलग तरह की थेरेपी की जरूरत होती है। इसलिए अगर आपके परिवार या आस-पड़ोस में किसी को यह बीमारी है, तो बिना किसी डॉक्टरी सलाह के दवाओं का सेवन न करें।
डिस्क्लेमर- यह टिप्स और सुझाव सामान्य जानकारी के लिए हैं। इन्हें किसी डॉक्टर या मेडिकल प्रोफेशनल की सलाह के तौर पर नहीं लें। इसका उद्देश्य स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर द्वारा चिकित्सा उपचार का विकल्प नहीं है। बीमारी या संक्रमण के लक्षणों की स्थिति में योग्य चिकित्सक से परामर्श जरूर लें।
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