वर्ल्ड फ़ॉरेस्ट्री डे या विश्व वानिकी दिवस या फिर अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस हर साल 21 मार्च को मनाया जाता है, इसे मनाए जाने का मुख्य उद्देश्य दुनिया के विभिन्न देशों को वनों का महत्व समझाना और इनके संरक्षण के लिए समाज का योगदान हासिल करना है। पृथ्वी पर संतुलन बनाए रखने के लिए इंसानों, जीव-जंतुओं, पानी, मिट्टी और हवा के साथ-साथ वृक्ष और वनों का भी अहम योगदान और महत्व है। जंगलों और वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण अब पृथ्वी पर वन और उनमें रहने वाले जीव-जंतुओं के आवास सिमट रह गए हैं।
हम अपने अस्तित्व के लिए जंगलों पर निर्भर हैं| जानवरों के लिए आवास और मनुष्यों के लिए आजीविका प्रदान करने के अलावा, वन वाटरशेड संरक्षण प्रदान करते हैं, मिट्टी के कटाव को रोकते हैं और जलवायु परिवर्तन को कम करते हैं| स्वस्थ-वन दुनिया के प्राथमिक ‘कार्बन सिंक’ में से एक हैं| विकास की दौड़ में अक्सर वनों को अनदेखा कर इनका कटाव किया जाता है| वन प्रबंधन वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों की समृद्धि और कल्याण में योगदान देने के लिए महत्वपूर्ण है| वन गरीबी उन्मूलन और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की उपलब्धि में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं| फिर भी इन सभी अमूल्य पारिस्थितिक, आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्य लाभों के बावजूद, वैश्विक वनों की कटाई खतरनाक दर पर जारी है| ‘अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस’ (World Forest Day) शहरीकरण और आधुनिकीकरण के लिए वनों की कटाई की प्रक्रिया को हतोत्साहित करने का एक प्रयास है| वनों की कटाई से इस ब्रह्मांड की सुंदरता नष्ट होती है| इसलिए इस दिन का उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति से आग्रह करना है कि वह इस ग्रह को अपने हिस्से पर सुरक्षित करने के लिए क्या योगदान दे सकता है| विश्व वानिकी दिवस पर वनों की कटाई के कारण वैश्विक जलवायु परिवर्तनों के प्रति चिंता दिखाने के लिए स्कूलों, कार्यालयों और अन्य कार्य स्थलों में सेमिनारों की व्यवस्था की जाती है| साथ ही इस दिन के उपलक्ष्य में पेड़ों के महत्व को प्रदर्शित करने के प्रतीक के रूप में पेड़ लगाने के कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं|वनों के महत्त्व को उजागर करने और इनके प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए एक दिन विश्व वानिकी दिवस या इंटरनेशनल डे ऑफ़ फॉरेस्ट्स के रूप में मनाया जाता है| आइये जानते हैं कब है वर्ल्ड फारेस्ट डे और क्या है इस वर्ष का विषय ।
इंटरनेशनल डे ऑफ़ फ़ॉरेस्ट के बारे में जानकारी
नाम : विश्व वानिकी दिवस (अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस)
तारीख़ : 21 मार्च (वार्षिक)
स्थापना : वर्ष 2012 में (संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा)
पहली बार : 21 मार्च 2013
उद्देश्य : वनों के महत्व और वृक्षारोपण के बारे में जागरूकता फैलाना
2024 में थीम : वन और नवाचार: बेहतर दुनिया के लिए नए समाधान’ है।
विश्व वानिकी दिवस मनाने की शुरूआत कब और कैसे हुई? (इतिहास)
संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा वर्ष 2012 में 21 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस घोषित किए जाने के बाद से ही विश्व स्तर पर 21 मार्च के दिन विश्व वानिकी दिवस (World Forestry Day) संयुक्त राष्ट्र वन फोरम तथा खाद्य एवं कृषि संगठन के सहयोग से मनाया जाता है। जिसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर वनों के महत्व के प्रति लोगों को जागरूक करना और वृक्षारोपण को बढ़ावा देना है। हालंकि कुछ जानकारों के अनुसार पहली बार वैश्विक स्तर पर फ़ॉरेस्ट डे मनाने की शुरुआत यूरोप में यूरोपीय कृषि परिसंघ की 23वीं महासभा द्वारा वर्ष 1971 में की गई थी। उस समय यूरोप में विकास के नाम पर हो रही पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के दुष्परिणामों को देखते हुए यह दिवस मनाए जाने का फैसला लिया गया था।
अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस क्यों मनाया जाता है? उद्देश्य
वन (जंगल) का पृथ्वी के लिए और सभी जीव-जंतु के लिए क्या महत्व है यह किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है, वन सभी जीव-जंतुओं का आवास स्थान और भोजन का जरिया है तथा इसी से हमारा जीवन है और यह ग्रह भी। विश्व वानिकी दिवस मनाए जाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को वनों के महत्व को समझाना और वनों के संरक्षण हेतु सामने आकर काम करने के लिए प्रेरित करना है। वनों (Forest) में पाए जाने वाले पेड़-पौधों के कारण ही पृथ्वी पर ऑक्सीजन की मात्रा बराबर बनी हुई है, इसलिए अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस (International Day of Forests) पर लोगों को पेड़ लगाने के लिए जागरूक करने और जंगलों की कटाई से उत्पन्न होने वाली समस्याओं से अवगत कराते हुए इसे मनाया हैं।
विश्व वानिकी दिवस का महत्व
हर साल 13 मिलियन हेक्टेयर या 32 मिलियन एकड़ से अधिक वन नष्ट हो जाते हैं, जो लगभग इंग्लैंड के बराबर क्षेत्र है। जैसे-जैसे जंगलों का विस्तार होता है, वैसे-वैसे पौधों और जानवरों की प्रजातियों का भी विस्तार होता है जिनका वे समर्थन करते हैं, जो सभी स्थलीय जैव विविधता का 80 प्रतिशत हिस्सा है। अधिक महत्वपूर्ण रूप से, वन जलवायु परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं: वनों की कटाई वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में 12% से 18% का योगदान देती है, जो विश्वव्यापी परिवहन क्षेत्र द्वारा उत्पादित सभी CO2 के लगभग बराबर है। स्वस्थ वन भी दुनिया के प्रमुख ‘कार्बन सिंक’ में से एक हैं, जो महत्वपूर्ण है। वन अब ग्रह के 30% से अधिक क्षेत्र में फैले हुए हैं और 60,000 से अधिक पौधों की प्रजातियों का घर हैं, जिनमें से कई अभी भी अज्ञात हैं। ग्रह के लगभग 1.6 अरब सबसे गरीब निवासियों, जिनमें विशिष्ट संस्कृति वाले स्वदेशी लोग भी शामिल हैं, के लिए जंगल भोजन, फाइबर, पानी और औषधियाँ प्रदान करते हैं। इसलिए वनों का संरक्षण करना बहुत जरूरी है।
विश्व वानिकी दिवस की 2024 थीम
प्रत्येक अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस के लिए थीम को जंगलों पर सहयोगात्मक भागीदारी (CPF) द्वारा चुना जाता है। इस वर्ष विश्व वानिकी दिवस 2024 का विषय ‘वन और नवाचार: बेहतर दुनिया के लिए नए समाधान’ है। अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस की इस थीम का यह भी अर्थ है कि पृथ्वी पर संभव सारा जीवन किसी न किसी तरह वनों के अस्तित्व से संबंधित है। जो पानी हम पीते हैं, जो दवाएँ हम लेते हैं, जो भोजन हम आनंदित करते हैं, जिस आश्रय के अंतर्गत हम आते हैं, और यहाँ तक कि जिस ऑक्सीजन की हमें आवश्यकता होती है, उन सभी का संबंध वनों से है। और जब जीवन उनकी सजीवता के साथ चल रहा हो तो हम ऐसी जीवंतता से कभी इनकार नहीं कर सकते। वर्ष 2023 की थीम ‘वन और स्वास्थ्य‘ (Forests and health) थी।और साल 2022 की थीम ‘वन और सतत उत्पादन और खपत‘ (Forests and sustainable production and consumption) थी, तो वहीं 2021 का कार्यक्रम “वन बहाली: पुनर्प्राप्ति और कल्याण का मार्ग” विषय के साथ मनाया गया था।
वर्ल्ड फ़ॉरेस्ट्री डे की पिछले कुछ सालों की थीम्स:
2023 : ‘वन और स्वास्थ्य‘ (Forests and health)
2022: वन और सतत उत्पादन और खपत (Forests and sustainable production and consumption)
2021: वन बहाली: पुनर्प्राप्ति और कल्याण का मार्ग (Forest restoration: a path to recovery and well-being)
2020: वन और जैव विविधता (Forests and Biodiversity)
2019: वन और शिक्षा (Forests and Education)
2018: वन और शहर (Forests and Cities)
2017: वन और ऊर्जा (Forests and Energy)
2016: वन और जल (Forests and Water)
2015: वन | जलवायु | परिवर्तन (Forests | Climate | Change)
2014: हमारे वन | हमारा भविष्य (Our Forests | Our Future)
विश्व वन दिवस कैसे मनाया जाता है?
इस दिन लोगों को पेड़ लगाने बाद पेड़ों की अंधाधुंध कटाई ना करने का संदेश दिया जाता है तो वहीं वन संरक्षण के लिए भी कई तरह के जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाते हैं इस दिन हमें भी आगे आकर वृक्षारोपण व वन महोत्सव के कार्यक्रमों में योगदान देना चाहिए। साथ ही इस दिन कई भाषणों और निबंध लेखन प्रतियोगिताओं का भी आयोजन होता है, जिसमें वन महोत्सव और इंटरनेशनल फॉरेस्ट डे (International Day of Forests) पर निबंध लिखने के लिए कहा जाता है, तो वही इस दिन वनों की कटाई पर बने सख्त कानूनों के बारे में भी लोगों को बताया जाता है। इस मौके पर स्कूलों, विश्वविद्यालयों, और सरकारी संस्थानों में पेड़ लगाए जाते है, और विद्यार्थियों के बीच कई नाटक एवं ड्राइंग कॉम्पीटीशन भी कराए जाते हैं। साल 2020 में ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी भीषण आग से मची तबाही ने काफी अधिक मात्रा में जीव-जंतुओं और जंगलों को जलाकर खाक कर डाला था।
भारत में राष्ट्रीय वन दिवस कब होता है?
भारत में प्रतिवर्ष जुलाई माह के प्रथम सप्ताह में वन महोत्सव के रूप में यह दिन वर्ष 1950 से ही मनाया जाता रहा है, भारत में वन महोत्सव मनाए जाने की शुरुआत उस समय रहे कृषि मंत्री कुलपति कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी द्वारा की गई थी। 70 के दशक में उत्तरप्रदेश में चमोली (जो अब उत्तराखंड में है) के लोगों ने पेड़ों को काटे जाने से बचाने के लिए ‘चिपको आंदोलन‘ किया था जिसमें लोग पेड़ों के चारो तरफ एक घेरा बनाकर उससे चिपक जाया करते थे ताकि पेड़ों को काटा न जा सके।
क्यों जरूरी है वनों का संरक्षण? क्या है इनका महत्व?
आज से कुछ वर्षों पहले तक पृथ्वी की कुल भूमि क्षेत्र का लगभग 50 प्रतिशत भाग वनों से ढका हुआ था परंतु आज यह सिमटकर मात्र 30% पर रह गया है, अगर अब भी वनों के संरक्षण पर जोर ना दिया गया तो इससे जीव-जंतुओं के आवास पर तो संकट आएगा ही साथ ही मनुष्य पर भी इसका प्रभाव देखने को मिलेगा। वनों और जंगलों में वृक्षों की होती अंधाधुंध कटाई और बढ़ते प्रदूषण स्तर के कारण ही आज पृथ्वी विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं और ग्लोबल वॉर्मिंग जैसी समस्याओं से जूझ रही है। कई ग्लेशियर लुप्त होने की कगार पर है, अभी से मौसम में अनियमितता देखने को मिल रही है, जल चक्र प्रभवित हुआ है। यहाँ तक की मृदा संरक्षण और जैव मंडल पर भी गहरा असर देखने को मिल रहा है। अगर वनों को उजड़ने से नहीं रोका गया या इनकी संख्या में वृद्धि नहीं हुई तो भविष्य में मानव संसाधनों के साथ ही पीने को स्वच्छ जल, सांस लेने के लिए ऑक्सीजन, और अन्न उगाने के लिए उपजाऊ मिट्टी के संकट से जूझता दिखाई देगा।
वनो से होने वाले लाभ
* पृथ्वी पर जीवन बनाए रखने के लिए प्राण वायु ऑक्सीजन बेहद आवश्यक है, वन बड़ी मात्रा में कार्बन डाई ऑक्साइड को वातावरण से सोख कर उसे ऑक्सीजन में बदल देते हैं।
* वनों से ही हमें फल, लकड़ियां, मसाले और कई तरह की औषधियां प्राप्त होती है, तथा रबड़ और नायलॉन जैसी चीजें भी मिलती है।
* आपके घर में मौजूद फर्नीचर का ज्यादातर सामान वनों की लकड़ियों से ही बनाया जाता है।
* इस ग्रह की जैव विविधता वनों के कारण ही संभव है इसमें रहने वाले जीव-जंतु यहां के पेड़-पौधों से ही अपना भोजन प्राप्त करते हैं और यही इनका आवास भी है।
* मिट्टी को जकड़े रखने वाली वृक्षों की मजबूत जड़ें भारी बरसात में मिट्टी के कटाव को रोकते हैं जिससे बाढ़ का खतरा कम हो जाता है।
* वन पृथ्वी के तापमान को नियंत्रण में रखना और प्रकाश परावर्तन को घटाना वनों का मुख्य कार्य होता है।
* वन में लगे पेड़ पौधे हवा की दिशा परिवर्तन व इनकी गति कम करने के साथ-साथ ध्वनि नियंत्रण का भी काम करते हैं।
विश्व में वनों के प्रकार
धरती का वह इलाका जहां वृक्षों का घनत्व सामान्य से ज्यादा होता है उसे वन कहा जाता है। भारत में निम्नलिखित वन मुख्य रूप से पाए जाते हैं जिनमें सदाबहार वन (वर्षा वन), मैंग्रोव वन शंकुधारी वन, पर्णपाती वन, शीतोष्ण कटिबंधीय आदि शामिल है।
बोरील वन: ये ध्रुवों के निकट पाए जाने वाले वन है।
उष्णकटिबंधीय वन: यह ऐसे वन होते हैं जो भूमध्य रेखा के निकट पाए जाते हैं।
शीतोष्ण वन: मध्यम ऊंचाई वाले स्थान पर मिल जाते हैं।
सदाबहार वन: यह वन उच्च वर्षा क्षेत्रों में पाए जाने वाले वन है भारत में इस तरह के वन पश्चिमी घाट, अंडमान निकोबार दीप समूह तथा पूर्वोत्तर भारत जैसे जगहों पर (जहां मानसून अधिकतम समय तक रहता है) पाए जाते हैं इन वनों में अधिकतर फल और हर किड्स जैसे पेड़ अधिक मात्रा में उगते हैं।
शंकुधारी वन: यह कम तापमान वाले क्षेत्रों में पाए जाने वाले वन है जो भारत में हिमालय पर्वत पर अधिकतर पाए जाते हैं। ऐसे वनों में पाए जाने वाले वृक्ष काफी सीधे और लंबे होते हैं नुकीली पत्तियों वाले इन पेड़ों की शाखाएं नीचे की ओर झुकी होने के कारण इनकी टहनियों पर बर्फ नहीं टिक पाती इन पेड़ों को जिम्नोस्पर्म भी कहा जा जाता है।
पर्णपाती वन: इस तरह के वन मध्यम वर्षा वाले इलाकों में पाए जाते हैं जहां वर्षा कुछ महीनों के लिए ही होती है। इन वनों में टीक के वृक्ष और इसी तरह के कई दूसरे वृक्ष उगते हैं। इन वृक्षों की पत्तियां गर्मी और सर्दी के महीने में गिर जाती हैं और चैत्र के महीने में इन वृक्षों पर नई पत्तियां आनी शुरू हो जाती है।
कांटेदार वन: इस तरह के वन कम नमी वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं और यहां उगने वाले वृक्ष काफी दूर-दूर स्थित होते हैं, यह वृक्ष कांटेदार होते हैं इसीलिए यह जल संरक्षित करने का काम करते हैं, इन वृक्षों की पत्तियां छोटी, मोटी या मॉम युक्त होती है। इनमें खजूर, कैक्टस, नागफनी जैसे वनस्पतियां पाई जाती हैं
मैंग्रोव वन: मैंग्रोव वन डेल्टाई इलाकों और नदियों के किनारों पर उगने वाले वन होते हैं इस तरह के वन नदियों द्वारा अपने साथ बहाकर लाई गई मिट्टी के साथ-साथ लवण युक्त तथा शुद्ध जल में भी आसानी से वृद्धि कर जाते हैं।
भारत के मशहूर वन के प्रकार व इतिहास
वन किसी भी देश के लिए एक आवश्यक संसाधन है. भारत इस संसाधन के मामले में बहुत धनी है क्योकि भारत में बहुत से बड़े और घने वन है. अनुमानतः भारतीय क्षेत्र का लगभग 20% भाग वन से घिरा हुआ है जो कि 65 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र के बराबर है. भारत ऐसे 10 देशों की सूची में शामिल है जो सबसे अधिक वन समृद्ध देश है. इन सूचियों में चीन, कांगो लोकतान्त्रिक गणराज्य, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, सूडान, ब्राजील और रूस भी शामिल है. भारतीय वन में कई तरह के जानवर और पंछी अपना घर बनाये हुए है. भारत में पाए जाने वाले वन्य जीव अभयारण्य और राष्ट्रिय उद्यान भारत के विशाल वन क्षेत्र का प्रमुख सूचक है. बेहतर जन जीवन, फसल, अत्यधिक वर्षा के लिए वन बहुत ही जरुरी है, लेकिन वर्तमान में वन कटाई के कारण बढती ग्लोबल वार्मिंग एक गंभीर मुद्दा बनता जा रहा है, इसलिए इस मुद्दे पर वृक्षा रोपण के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना बहुत आवश्यक है. भारत लकड़ी से बने उत्पादों का उत्पादन करता है. भारत के पेपर उद्योग में भी लकड़ी की ज्यादा खपत होती है, इसके अलावा भारत ईंधन लकड़ी का सबसे बड़ा उपभोक्ता है. इस तरह के आवश्यकतों को पूरा करने के लिए जंगलों की कटाई एक बड़े विनाश की तरफ भारत सहित पुरे विश्व को अग्रसर कर रही है.
भारत में वन संरक्षण का इतिहास
गिब्सन ने वन के संरक्षण और उसकी खेती को बचाने के लिए प्रतिबन्ध लगाने के नियमों को लागू करने की कोशिश की. 1865 से 1894 तक शाही जरूरतों की सामग्रियों के लिए वन संरक्षण स्थापित किये गए थे. बाद में वन्य प्रबंधन प्रणाली को अपनाकर वन का उत्पादन करने की योजना बनी, फिर लोगों ने जंगली वन संरक्षण में रूचि लेना शुरू कर दिया, जिसके बाद भारतीय राज्य के शासकों ने वन में पक्षियों और स्तनधारियों के संरक्षण में मदद करने वाले लोगों को संरक्षण देना शुरू कर दिया. 1926 से 1947 के बीच पंजाब और उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण किया गया. भारत में अधिकांश राष्ट्रीय उद्यानों का निर्माण कार्य हुआ. संरक्षण का ये लाभ हुआ की कई प्रजातीय विलुप्त होने से बच गयी। इसके बाद 1952 की वन नीति के तहत भारत के एक तिहाई वन को सुरक्षित रखने का लक्ष्य रखा गया. वनों को नुकसान पहूँचाने वाली कुछ गतिविधियों पर रोक लगा दी गयी, इससे अगले 50 वर्षों में वन को लेकर लोगों की सोच और इसके विकास में बदलाव को देखा गया है. उसके बाद पांच साल की एक योजना के माध्यम से इसको संरक्षित करने के लिए रचनात्मक रवैया को अपनाया गया. 1980 में वन संरक्षण अधिनियम पारित किया गया था, इस अधिनियम में इस बात को निर्धारित किया गया था कि अब से वन क्षेत्र में कृषि या वानिकी और खेती को करने के लिए केंद्रीय अनुमति लेनी पड़ेगी. अगर वो ऐसा नहीं करते तो ये अपराध की श्रेणी में रखा जायेगा. इस कानून का उद्देश्य वनों की कटाई को सीमित करना, जैव विविधता का संरक्षण और वन्य जीवो को संरक्षित करना है, लेकिन इस वर्ष कम निवेश और अनदेखी की वजह से वनों की कटाई में कुछ खास कमी नहीं आई थी, जिसके बाद भारत ने 1988 में अपनी राष्ट्रीय वन नीति का शुभारंभ किया जोकि एक संयुक्त वन प्रबंधन नीति कार्यक्रम के तहत ये प्रस्तावित किया कि वन विभाग के साथ ही अब गावों में एक विशेष वन ब्लॉक् का प्रबंधन होगा और जंगलों की सुरक्षा विशेष रूप से लोगों की जिम्मेदारी होगी. इस तरह की पहल को सकारात्मक माना गया, क्योकि 1992 तक भारत के सत्रह राज्य ने संयुक्त वन प्रबंधन में भाग लिया और लगभग 20 लाख हेक्टेयर वनों को सुरक्षा के तहत लाया गया।1990 से 2000 तक एफएओ ने एक अध्ययन में पाया कि भारत दुनिया में वन कवरेज या आवृत क्षेत्र के मामले में पांचवा सबसे बड़ा लाभकारी देश है, जोकि 2000 से 2010 तक में एफएओ के अध्ययन में ही भारत को तीसरा बड़ा लाभकारी बताया गया है. इस तरह यह वन को संरक्षित करने की अपनी नीति में कामयाब है।
भारत में वनों के प्रकार
भारत विविधता से भरा हुआ देश है इसकी भूमि क्षेत्र में भी विविधता है कही ज्यादा सुखी भूमि है तो कही अत्यधिक वर्षा युक्त क्षेत्र होने से नमी युक्त भूमि पाई जाती है. इस वजह से जंगली वनस्पतियों में भी विविधता पाई जाती है. भारत विश्व के 17 मेगा जैव विविध क्षेत्रों में से एक है, जिससे वन विविध वनस्पतियों के साथ ही वन जीवों के विभिन्न पारिस्थितिक तंत्र का समर्थन करते है. भारत में वनों के कई प्रकार है उत्तर में लद्दाख के अल्पाइन तराइन, पश्चिम में राजस्थान के रेगिस्तान से, केरल में वर्षा वन से, उत्तर पूर्व में सदाबहार वन तक के सभी वन अपनी जलवायु, मिट्टी के प्रकार, स्थलाकृति इत्यादि के साथ ही इनकी प्रकृति और रचना के आधार पर इनका वर्गीकरण हुआ है. भारतीय वन को कई वर्गों में वर्गीकृत किया गया है जिनमे से कुछ का वर्णन हम करेंगे, जोकि निम्नलिखित है :-
उष्णकटिबंधीय वर्षा वन : इस तरह के वन उष्णकटिबंधीय नमी वाले जलवायु और उच्च वर्षा की विशेषताओं से युक्त होते है. ये वन हवा को ठंडा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है, भारत का उत्तर पूर्वी क्षेत्र वर्षा वन के लिए जाना जाता है. इस तरह के वैश्विक जलवायु वाले वन में जानवरों की व्यापकता पाई जाती है. भारतीय वन का सबसे पुराना प्रारूप उष्णकटिबंधीय वर्षा वन है, इस वन से कॉफ़ी, चॉकलेट, केला, आम, पपीता, गन्ना इत्यादि जैसे पौधे ही आये है।
सदाबहार वन : सदाबहार वन भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्रों और अंडमान निकोबार द्वीप के उच्च वर्षा क्षेत्रों में पाए जाते है. जिस भाग में कई महीनों तक मानसून रहते है वहाँ ये वन पाए जाते है. इस तरह के वन में पशु और कीटों की जनसंख्या प्रचुर होती है इस तरह के वन उनके जीवन को समृद्ध बनाते है।
पर्णपाती वन : पर्णपाती वन को दो रूपों में विभाजित किया जा सकता है एक नमी युक्त और दूसरी सुखी हुई पर्णपाती वन. इस तरह का वन वैसे क्षेत्रों में पाया जाता है जहाँ 100 सेंटीमीटर से 200 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा होती है. इस तरह के वन भारत के अधिकांश भागों में पाए जा सकते है. ये पूरब में जम्मू से पश्चिम में पश्चिम बंगाल तक शिवालिक पहाड़ियों तक पाए जाते है. इस तरह के वन में सागौन, आम, बांस, चन्दन और किल जैसे पेड़ पाए जाते है. उत्तर पूर्वी क्षेत्रों को छोड़कर भारत के उत्तरी और दक्षिण भाग में सुखी पर्णपाती वन पाए जाते है. इस वन में कई तरह के जानवर जैसे की कीड़े, स्तनधारी, सरीसृप पाए जाते है. मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक में इस तरह के वन पाए जाते ह।
तटीय क्षेत्र के मंगल वृक्ष वन : यह वन नदी डेल्टा तट पर पाए जाते है इस तरह के वनों के पौधे खारे और ताजे पानी के मिश्रण में बढ़ते है ये वन ज्यादातर नमी वाले इलाकों में पाए जाते है।
भारत के मशहुर वन
भारत में दुनिया के बेहतरीन वन मौजूद है जो बाघों से हाथियों तक और भी कई तरह के जीवों के साथ ही हरे भरे तरह तरह के पेड़ों से भरे है. भारत का वन अद्भुत जीवित प्रजातियों का घर है भारत में मौजूद आश्चर्य जनक और मशहुर वनों का नाम निम्न है –
सुन्दर वन : यह वन पश्चिम बंगाल के पूर्वी राज्य में स्थित है यह दुनिया का सबसे बड़ा डेल्टा है. यह लगभग 10,000 वर्ग किलो मीटर में फैला हुआ है यह वन सफ़ेद बाघों के घर के रूप में ज्यादा जाना जाता है।
गिर वन : गिर वन गुजरात के जूनागढ़ में स्थित है यह 1,412 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है इस वन में एशियाटिक शेर ज्यादा देखने को मिलते है. इसके अलावा इस वन में जंगली चित्तीदार बिल्ली, भालू, नीलगाय, चिंकारा और जंगली सूअर इत्यादि भी पाए जाते है।
कान्हा नेशनल पार्क : यह मध्य प्रदेश में स्थित है यह पार्क बारह सिंघा हिरण के लिए सबसे ज्यादा लोकप्रिय है. कान्हा के वन से ही प्रेरित होकर रुडयार्ड किपलिंग ने द वन बुक लिखा था. यहाँ पंछियों की लगभग 300 प्रजातियाँ पाई जाती है।
वन्दलुर रिज़र्व वन : यह वन दक्षिण भारत में स्थित है इस वन में कई तरह के पंछी निवास करते है।
इसी तरह के और भी वन है जैसे के मेघालय का खासी हिल्स, अरुणाचल प्रदेश का नामदफा नेशनल पार्क, उत्तराखंड का जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क, कर्नाटक का बन्दीपुर नेशनल पार्क, तमिलनाडू का निलिगिरी बायोस्फियर रिज़र्व ये सभी वन संरक्षित है।
पौधों और वनों की स्थायी उपस्थिति पर्यावरण के बेहतर और स्वस्थ स्वरूप को दर्शाता है, जो प्रत्येक मनुष्य और जानवरों के बेहतर जीवन जीने के लिए आवश्यक होता है, पेड़-पौधे और वन हमारे जीवन का आधार होतें हैं, जिनके बिना हम श्वांस भी नहीं ले सकते हैं, जो बहुत से पशु-पक्षियों का आवास और मनुष्यों को आजीविका प्रदान करती है, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को रोकती है। वनों के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता। वे जलवायु विनियमन, जल संरक्षण और जैव विविधता के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इसके अलावा, जंगल कई समुदायों की आजीविका के लिए आवश्यक हैं, जो लकड़ी, दवा और भोजन जैसे संसाधन प्रदान करते हैं। विश्व वानिकी दिवस का उद्देश्य हमें इन अमूल्य पारिस्थितिक तंत्रों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए हमारी जिम्मेदारी की याद दिलाना है।
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