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Good morning : होलिका दहन पर इस वर्ष भद्रा का साया, 100 साल बाद होली और चंद्र ग्रहण एक साथ, जानिए शुभ मुहूर्त पूजा विधि, कथा और महत्व!

<i class= Good morning : होलिका दहन पर इस वर्ष भद्रा का साया, 100 साल बाद होली और चंद्र ग्रहण एक साथ, जानिए शुभ मुहूर्त पूजा विधि, कथा और महत्व!" />

हमारे देश में होली का विशिष्ट उत्सव दो दिनों तक चलता है, हालांकि इसकी तैयारी कम से कम एक सप्ताह पहले से ही शुरू हो जाती है। इस उत्सव का मुख्य उद्देश्य बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाने के लिए होता है। इसमें एक अलाव प्रज्वलित किया जाता है और इसमें बुराइयों का नाश करने की प्रार्थना की जाती है वहीं होलिका दहन के अगले दिन रंग खेलकर खुशियां मनाने की प्रथा है। हिन्दू पंचांग के अनुसार रंगों का त्यौहार होली हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है और लोग मिलजुल कर रंग खेलते हैं। रंग होली के एक दिन पहले होलिका दहन होता है जिसे छोटी होली के रूप में मनाया जाता है। आइए जानें इस साल कब मनाई जाएगी होली और किस मुहूर्त में होलिका दहन करने से घर में आएगी सुख-समृद्धि।

हिंदू धर्म में होली पर्व को बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि की शाम से होली पर्व की शुरुआत हो जाती है। सबसे पहले शाम के समय होलिका दहन किया जाता है और अगले दिन सुबह के समय रंग वाली होली धुमधाम से खेली जाती है। होलिका दहन पर इस साल चंद्र ग्रहण के साथ साथ भद्रकाल का साया भी रहेगा। इस साल करीब 100 साल बाद होली पर चंद्रग्रहण लगने जा रहा है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 24 मार्च को सुबह 09 बजकर 55 मिनट से हो जाएगी और इसका समापन 25 मार्च 2024 को दोपहर 12 बजकर 30 मिनट पर होगा। शास्त्रों के मुताबिक, होलिका दहन पूर्णिमा तिथि और भद्रा रहित काल में करना शुभ माना जाता है। ऐसे में होलिका दहन 24 मार्च को किया जाएगा वहीं रंगोत्सव 25 मार्च को मनाया जाएगा।

होली के पीछे भी एक कहानी है
हर त्यौहार की अपनी एक कहानी होती है, जो धार्मिक मान्यताओ पर आधारित होती है. होली के पीछे भी एक कहानी है. जो इस प्रकार है।
हिरन्याक्श्यप नाम का एक राजा था, जो खुद को सबसे अधिक बलवान समझता था, इसलिए वह देवताओं से घृणा करता था  और उसे देवताओं के भगवान विष्णु  का नाम सुनना भी पसंद नहीं था, लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था. यह बात हिरन्याक्श्यप को बिलकुल पसंद नहीं थी, वह कई तरह से अपने पुत्र को डराता था और भगवान विष्णु की उपासना करने से रोकता था, पर प्रह्लाद एक नहीं सुनता, उसे अपने भगवान की भक्ति में लीन रहता था. इस सबसे परेशान होकर एक दिन हिरन्याक्श्यप ने एक योजना बनाई। जिसके अनुसार उसने अपनी बहन होलिका (होलिका को वरदान प्राप्त था, कि आग पर उसे विजय प्राप्त है, उसे अग्नी जला नहीं सकती) को अग्नी की वेदी पर प्रहलाद को लेकर बैठने को कहा. प्रहलाद अपनी बुआ के साथ वेदी पर बैठ गया और अपने भगवान की भक्ति में लीन हो गया. तभी अचानक होलिका जलने लगी और आकाशवाणी हुई, जिसके अनुसार होलिका को याद दिलाया गया, कि अगर वह अपने वरदान का दुरूपयोग करेगी, तब वह खुद जल कर राख हो जाएगी और ऐसा ही हुआ. प्रहलाद का अग्नी कुछ नहीं बिगाड़ पाई और होलिका जल कर भस्म हो गई. इसी तरह प्रजा ने हर्षोल्लास से उस दिन खुशियाँ मनाई और आज तक उस दिन को होलिका दहन के नाम से मनाया जाता है और अगले दिन रंगो से इस दिन को मनाया करते है।

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
ज्योतिषियों के अनुसार भद्रा के बाद होलिका दहन करना सर्वोत्तम होता है। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त होली से एक दिन पहले यानी 24 मार्च को रात 11:13 बजे से 12:27 बजे तक है। यानी आपको होलिका दहन के लिए पूरे 1 घंटा 14 मिनट का समय मिलेगा। इस शुभ मुहूर्त में होलिका दहन करने से कोई दोष नहीं लगेगा और आपका जीवन सुखमय रहेगा।

होलिका दहन पर भद्रा का साया
इस वर्ष होलिका दहन 24 मार्च, सोमवार को किया जाएगा, लेकिन होलिका दहन के दिन भद्रा साया रहेगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भद्राकाल को शुभ नहीं माना जाता है और इस दौरान किसी भी तरह का पूजा-पाठ व शुभ काम करना वर्जित होता है। पंचांग के मुताबिक 24 मार्च को सुबह से भद्राकाल लग जाएगी। इस दिन भद्रा का प्रारंभ सुबह 09 बजकर 54 मिनट से हो रही है, जो रात 11 बजकर 13 मिनट तक रहेगी। इस तरह से भद्राकाल की समाप्ति के बाद ही होलिका दहन किया जा सकता है।

24 मार्च को भद्रा कब से कब तक 
भद्रा पूंछ- शाम 06 बजकर 33 मिनट से रात्रि 07 बजकर 53 मिनट तक
भद्रा मुख- रात्रि 07 बजकर 53 मिनट से रात्रि 10 बजकर 06 मिनट तक

होलिका दहन की विधि
* होलिका दहन के लिए लकड़ी एकत्रित कर लें. इसके बाद उन्हें कच्चे सूत से तीन या सात बार लपेटें।
* इसके बाद सभी लकड़ियों पर थोड़ा सा गंगा जल डालकर उन्हें पवित्र कर लें। इसके बाद उन पर जल, फूल और कुमकुम छिड़ककर उनकी पूजा करें।
* पूजा में रोली माला, अक्षत, साबुत हल्दी, गुलाल, नारियल, बताशे-गुड़ का प्रयोग करें।
* इसके बाद होलिका की पूजा करें और फिर होलिका की कम से कम 5 या 7 परिक्रमा करें।
* इस बात का विशेष ध्यान रखें कि होलिका की पूजा करते समय आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए।

100 साल बाद होली और चंद्र ग्रहण एक साथ
इस वर्ष होली पर चंद्र ग्रहण का भी साया रहेगा। चंद्र ग्रहण 25 मार्च को सुबह 10:23 बजे शुरू होगा और दोपहर 3:02 बजे तक रहेगा। यह चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा। इसलिए इसका सूतक काल भी मान्य नहीं होगा।

होलिका दहन के आवश्यक नियम और पूजा विधि
हिंदू शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद शुरू होने वाला समय) में पूर्णिमा तिथि के प्रबल होने पर ही किया जाना चाहिए। घर में सुख-शांति और समृद्धि के लिए दहन से पहले होलिका पूजा का विशेष महत्व होता है। होलिका पूजन करते समय अपना मुंह पूर्व या उत्तर की ओर करके बैठे। पूजन की थाली में पूजा समाग्री जैसे: रोली, पुष्प, माला, नारियल, कच्चा सूत, साबूत हल्दी, मूंग, गुलाल और पांच तरह के अनाज, गेहूं की बालियां व एक लोटा जल होना चाहिए। होलिका के चारों ओर सहपरिवार सात परिक्रमा करके कच्चा सूत लपेटना शुभ होता है। इसके पश्चात विधिवत तरीके से पूजन के बाद होलिका को जल का अर्घ्य दें और सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका का दहन करें। होलिका दहन की राख बेहद पवित्र मानी जाती है। इसलिए होलिका दहन के अगले दिन सुबह के समय इस राख को शरीर पर मलने से समस्त रोग और दुखों का नाश किया जा सकता है।

होलिका दहन की तैयारियां
होलिका दहन के लिए लगभग एक महीने पहले माघ पूर्णिमा से ही तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं। कांटेदार झाड़ियों या लकड़ियों को इकट्ठा किया जाता है फिर होली वाले दिन शुभ मुहूर्त में होलिका दहन किया जाता है। ग्रंथों के अनुसार होलिका दहन में गाय के गोबर से बने कंडे और कुछ चुने हुए पेड़ों की लकड़ियों को ही जलाना चाहिए। क्योंकि धार्मिक दृष्टि से भी पेड़ों पर किसी न किसी देवता का अधिपत्य होता है। उनमें देवी-देवताओं का वास माना जाता है। इसलिए तीज-त्योहारों पर शास्त्रों में पेड़ों की पूजा करने का भी विधान है, जो हमारे लिए स्वास्थ्य वर्धक व हमारे प्राणों के रक्षक हैं। इसलिए हरे पेड़ों का होलिका दहन नहीं करना चाहिए।

होलिका दहन का महत्व
हिंदू धर्म की मानें तो हर त्योहार का अपना धार्मिक और पौराणिक महत्व होता है। क्योंकि हर एक त्योहार हमें एक अच्छा संदेश, सीख और शिक्षा प्रदान करता है। इसी क्रम में होलिका दहन पर्व भी हमें एक अच्छी सीख देता है। होलिका दहन के द्वारा हम समाज के अंदर फैली बुराइयों को जलाते हुए उससे सीख लेते हैं। माना जाता है कि इस दिन हर एक व्यक्ति को संकल्प लेते हुए अपनी असुरी प्रवृत्ति का होलिका की अग्नि में दहन कर देना चाहिए। मान्यता अनुसार जो भी कोई व्यक्ति पूरे विधि विधान से होलिका दहन की पूजा कर उसकी परिक्रमा करता है उसे स्वस्थ जीवन और सुख-समृद्ध की प्राप्ति होती है। वसंत ऋतु के आगमन का स्वागत करते हुए इस उत्सव के माध्यम से हम अग्नि देवता के प्रति अपना कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।

कैसे मनाते हैं होली?
होली का त्यौहार पुरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन उत्तर भारत में इसे अधिक उत्साह से मनाया जाता है. होली का त्यौहार देखने के लिए लोग ब्रज, वृन्दावन, गोकुल जैसे स्थानों पर जाते है. इन जगहों पर यह त्यौहार कई दिनों तक मनाया जाता हैं. ब्रज में ऐसी प्रथा है, जिसमे पुरुष महिलाओं पर रंग डालते है और महिलाए उन्हें डंडे से मारती है, यह एक बहुत ही प्रसिद्ध प्रथा है, जिसे देखने लोग उत्तर भारत जाते है. कई स्थानों पर फूलों की होली भी मनाई जाती है और गाने बजाने के साथ सभी एक दुसरे से मिलते है और खुशियाँ मनाया  करते है. मध्य भारत एवम महाराष्ट्र में रंग पञ्चमी का अधिक महत्त्व है, लोग टोली बनाकर रंग, गुलाल लेकर एक दुसरे के घर जाते है और एक दुसरे को रंग लगाते है और कहते है “बुरा न मानों होली है ”. मध्य भारत के इन्दोर शहर में होली  की कुछ अलग ही धूम होती है, इसे रंग पञ्चमी की “गैर” कहा जाता है, जिसमे पूरा इंदोर शहर एक साथ निकलता है और नाचते गाते त्यौहार का आनंद लिया जाता. इस तरह के आयोजन के लिए 15 दिन पहले से ही तैयारिया की जाती है. वहीं रंगो के इस त्यौहार को “फाल्गुन महोत्सव” भी कहा जाता है, इसमें पुराने गीतों को ब्रज की भाषा में गाया जाता. भांग का पान भी होली का एक विशेष भाग है. नशे के मदमस्त होकर सभी एक दुसरे से गले लगते सारे गिले शिक्वे भुलाकर सभी एक दुसरे के साथ नाचते गाते है. होली पर घरों में कई पकवान बनाये जाते है. स्वाद से भरे हमारे देश में हर त्यौहार में विशेष पकवान बनाये जाते है।

होली में रखे सावधानी
होली रंग का त्यौहार है पर सावधानी से मनाया जाना जरुरी है. आजकल रंग में मिलावट होने के कारण कई नुकसान का सामना करना पड़ता है इसलिए गुलाल से होली मानना ही सही होता है. साथ ही भांग में भी अन्य नशीले पदार्थो का मिलना भी आम है इसलिए इस तरह की चीजों से बचना बहुत जरुरी है।
*  गलत रंग के उपयोग से आँखों की बीमारी होने का खतरा भी बड़ रहा है.इसलिए रसायन मिश्रित वाले रंग के प्रयोग से बचे।
*  घर से बाहर बनी कोई भी वस्तु खाने से पहले सोचें मिलावट का खतरा त्यौहार में और अधिक बड़ जाता है।
*  सावधानी से एक दुसरे को रंग लगाये, अगर कोई ना चाहे तो जबरजस्ती ना करे. होली जैसे त्योहारों पर लड़ाई झगड़ा भी बड़ने लगा है.
 त्वचा की सुरक्षा के लिए विशेष देखभाल आवश्यक है। जब भी होली खेलने निकलें, उससे पहले त्वचा पर कोई तैलीय क्रीम या फिर तेल, घी या फिर मलाई लगाकर निकलें, ताकि त्वचा पर रंगों का विपरीत असर न पड़े।
*  बालों को रंग से बचाने का पूरा प्रयास करें। रंग आपके बालों को रूखा, बेजान और कमजोर बना सकते हैं। इनसे आपके बालों का पोषण भी छिन सकता है।
 यदि होली खेलते समय आंखों में रंग चला जाए तो तुरंत आंखों को साफ पानी से धोएं। यदि आंखें धोने के बाद भी तेज जलन हो, तो बिना देर किए डॉक्टर को दिखाएं।
*  आंखों पर गलती से गुब्बारा लग जाए या खून निकल आए तो पहले सूती कपड़े से आंखों को ढंकें या फोहा लगाएं। इसके बाद डॉक्टर को जरूर दिखाएं।
 बाजार के हरे रंग से होली खेलते समय ध्यान रखें, इसमें कॉपर सल्फेट पाया है, जो आंखों में एलर्जी, सूजन अंधापन जैसी समस्याएं पैदा कर सकता है। इस बात का विशेष ध्यान रखें।
*  सिल्वर चमकीले रंग का इस्तेमाल न करें। इसमें एल्युमीनियम ब्रोमाइड होता है, जो त्वचा के कैंसर के लिए जिम्मेदार हो सकता है। वहीं काले रंग में उपस्थि‍त लेड ऑक्साइड किडनी को बुरी तरह प्रभावित करता है।
 होली खेलें लेकिन पूरे होश में खेलें। अधि‍क नशा करना आपके स्वास्थ्य को तो प्रभावित करता ही है, कई बार अनहोनी घटनाओं का कारण भी बनता है। होली सुरक्षि‍त तरीके से खेलें।
 बाजार की मिठाईयों का सेवन करने से बचें। इनमें मिलावट हो सकती है, जो आपके लिए खतरनाक साबित हो सकती है। घर पर बने व्यंजनों का भरपूर मजा लें, क्योंकि वे शुद्धता के साथ बनाए जाते हैं।
 होली की मस्ती में कई बार लड़ाई-झगड़े भी हो जाते हैं, लेकिन यह भाई-चारे का पर्व है भूलें नहीं। आपसी भाईचारा बनाए रखें और मिलजुलकर खूबसूरत रंगों के साथ होली मनाएं।
 कोशि‍श करें कि हर्बल रंगों का ही प्रयोग करें। इन रंगों का कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता और इन्हें आसानी से घर पर बनाया भी जा सकता है। वैसे बाजार में भी हर्बल रंग उपलब्ध हैं।

होलिका दहन से शनि दोष से मिलेगी मुक्ति
वैदिक शास्त्रों अनुसार होलिका की रात्रि के समय पूजा करने से जिस भी जातक की कुंडली में व्याप्त दोष होते हैं उन्हें कम किया जा सकता है। इसके साथ ही होलिका की पूजा कर व्यक्ति शनि दोष और पितृ दोष को भी दूर कर सकता है। होलिका दहन पर गन्ना भूनने और अग्नि की परिक्रमा करने से दोष दूर होते हैं। होलिका की परिक्रमा से जातक की ग्रह बाधा भी दूर होती है।

होलिका दहन पर करें ये महाउपाय
*  होलिका दहन के समय परिवार के लोगों द्वारा एक साथ होलिका की परिक्रमा करना शुभ होता है। परिक्रमा लेते वक़्त होलिका में चना, मटर, गेहूं, अलसी अवश्य डालें। इसे धन लाभ का अचूक उपाय माना गया है।
*  मान्यता अनुसार होली वाली रात पीपल के पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाकर, पीपल के पेड़ की सात परिक्रमा लगाएँ। ऐसा करने से जीवन में आ रही सभी बाधाओं को दूर किया जा सकता हैं।
*  होलिका दहन के अगले दिन सबसे पहले मंदिर जाकर देवी-देवताओं को गुलाल चढ़ाना चाहिए, उसके बाद ही होली खेलनी चाहिए।
*  होलिका के जलने के दौरान उसमें कपूर डालने से हमारे आसपास मौजूद हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।
*  होलिका दहन के समय सरसों के कुछ दानें होलिका को अर्पित कर माँ लक्ष्मी को याद करें। ऐसा करने से देवी लक्ष्मी घर पर कृपा करती हैं।

होलिका दहन से हमें सीख मिलती है कि जब भी हम दूसरों को जिस आग में जलाने की कोशिश करते है तो अक्सर उसी आग में हम स्वयं जल जाते है, प्राण करें कि इस होलिका की आग में अपने नकारात्मक विचारों को जला देंगे और पूरी दुनिया उत्साह और सकारात्मकता का रंग फैला देंगे। होलिका दहन के साथ साथ आपके सारे दुखों, कष्टों और सारे गमों का दहन हो जाएं। आप सभी को खुशियों की बहार मिलें जिस तरह होलिका जलकर राख हो गई थी  उसी तरह आपके जीवन के सारे कष्ट और पाप मिट जाए, आप सभी को होलिका दहन की बहुत बहुत शुभकामनाए !

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